गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

गांधी के झूठ की कथा भाग- दस


32. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी झंडा समिति (1931) ने सर्वसम्मति से भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
33.राष्ट्र ध्वज का अपमान --- आज़ादी से पहले इस तिरंगे ने हिन्दू औरतों को बलात्कार से बचाया ही हिन्दू मंदिरों को खंडित और अपवित्र होने से बचाया। इसी तिरंगे का अपमान महात्मा गांधी ने खुद तब किया,जब 1946 में नौखली के दंगों के दौरान उनके तम्बू पर लगे इस झंडे को देख कर "एक" मुसलमान ने इस पर आपत्ति दर्ज़ की तो उन्होंने करोड़ों देशवासियों की भावनाओं को ताक पर रख कर,बिना किसी प्रतिरोध के उस झंडे को अपने तम्बू पर से उतरवा दिया।

34.1938 . का कांग्रेस अधिवेशन ताप्ती नदी के तट पर हरिपुर में हुआ। इसमें पहली बार सुभाष बोस को कांग्रेस के इक्यानवे वर्ष का अध्यक्ष बनाया गया। सुभाष ने अपने भाषण में भारत को मुख्य विषय बनाया। आर्थिक संरचना की योजना रखी। कांग्रेस के ढांचे को प्रजातांत्रिक बनाने को कहा। इसके साथ ही स्वतंत्रता प्राप्ति की एक निश्चित तारीख तय करने को कहा, इससे गांधीजी के साथ टकराव भी बढ़ा। सुभाष, गांधी जी को अपना प्रतिद्वंदी लगने लगे। उन्हें कांग्रेस में अपनी 'सुपरप्रेसीडेंट' की गरिमा को खतरा लगा।  

अत: 1939 के चुनाव के लिए उन्होंने अपना प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैय्या को खड़ा कर दिया। गांधीजी की आशा के विपरीत उनका व्यक्ति 203 मतों से पराजित हो गया। गांधीजी ने अपनी व्यक्तिगत हार मानी। समूचे देश में समाचार तेजी से फैल गया। गांधीजी ने इस पराजय को अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया। त्रिपुरा में बीमारी की अवस्था में सुभाष ने अधिवेशन में भाग लिया। उन्होंने एक लेख भी लिखा जिसमें उन्होंने विष देने की आशंका भी व्यक्त की। (देखें, सुभाष का लेख माई स्ट्रेन्ज इलनैस माडर्न रिव्यू, कोलकाता, अप्रैल 1939) गांधीजी नियंत्रित 15 कार्यकारिणी के सदस्यों में से 13 ने त्यागपत्र दे दिया तथा उनके साथ कार्य करने से इंकार कर दिया। आखिर सुभाष ने इस्तीफा दे दिया।

35.गांधी ने कहा यदि रमैया चुनाव हार गया तो वे राजनीति छोड़ देंगे लेकिन उन्होंने अपने मरने तक राजनीति नहीं छोड़ी जबकि रमैया चुनाव हार गए थे। इस घटना ने सिद्ध कर दिया था गांधी के ना तो   कोई नियम थे, ना सिद्धांत और ना ही वो स्वयं सर्वमान्य नेता थे और उनकी नीतियाँ ही।
 
36.गांधी ने केवल नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस से बाहर निकालने के लिये भूख हड़ताल की  बल्कि गांधी ने ब्रिटिश सरकार को यहाँ तक वादा किया था कि अगर वे बोस को पाते है तो वे प्राधिकारियों  को समर्पित कर देंगे।

 बेचारे नेताजी देश-विदेश समर्थन के लिए भटकते रहे जबकि उनके देश में गाँधी सहयोग नहीं दिया ...कितनी बढ़ी विडम्बना है..सोचिये नेताजी सुभाष यदि इस देश को नेतृत्व देते तो शायद हमें सम्पूर्ण आजादी मिलती....


- विश्वजीत सिंह अभिनव अनंत
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत स्वाभिमान दल