प्रश्न- इस्लाम में 'अल-तकिया' किसे कहते है और इसका इस्लाम के प्रचार प्रसार में क्या योगदान है ?
उत्तर- इसने इस्लाम के प्रचार प्रसार में जितना योगदान दिया है उतना इनकी सैंकड़ों हजारों कायरों की सेनायें नहीं कर पायीं .. इस हथियार का नाम है "अल - तकिया" । अल-तकिया के अनुसार यदि इस्लाम के प्रचार , प्रसार अथवा बचाव के लिए किसी भी प्रकार का झूठ, धोखा , छल करना पड़े -
सब धर्म स्वीकृत है । इस प्रकार अल - तकिया ने मुसलमानों को सदियों से बचाए रखा है ।
इस हथियार "अल - तकिया" के उदाहरण ---
1 -मुहम्मद गौरी ने 17 बार कुरआन की कसम खाई थी कि भारत पर हमला नहीं करेगा, लेकिन हमला किया ।
2 -अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ के राणा रतन सिंह को दोस्ती के बहाने बुलाया फिर क़त्ल कर दिया ।
3 -औरंगजेब ने शिवाजी को दोस्ती के बहाने आगरा बुलाया फिर धोखे से कैद कर लिया ।
4 -औरंगजेब ने कुरआन की कसम खाकर श्री गोविन्द सिंह को आनदपुर से सुरक्षित जाने देने का वादा किया था. फिर हमला किया था.
5 -अफजल खान ने दोस्ती के बहाने शिवाजी की हत्या का प्रयत्न किया था ।
जब गुट में होते हैं या मज़बूत स्थिति में तो अलगाववाद, आतंकवाद और मुस्लिम बर्बरता का साक्षात् प्रतिरूप... परन्तु जैसे ही इनकी स्थिति कमज़ोर पड़ती है या इनकी जनसंख्या कम होती है अथवा सामने वाला हावी होता दिखाई देता है .... यह वैसे ही भाईचारे की बात करने लगते हैं !
आप सोचते हैं की यह सुधर गए या शायद अपनी गलती समझ गए परन्तु ऐसा नहीं होता! यह सब ढोंग होता है आप जैसे ही यह सोच कर पीछे हटाते हैं यह वैसे होई अपने रंग दिखाना शुरू कर देते हैं! मौका मिले तो पीठ में छुरा तक घोप दें ! यह केवल धोखा होता है जो की इनका धर्म गैर मुस्लिमो को देने के लिए कहता है और इस विधि को इस्लाम में अल-तकिया' कहते हैं.
Ye sab galat baat hai
जवाब देंहटाएंIslam me kisi ko bhi dhoka dene ko gunah bataya hai
Ye sab ilzaam hai mazhab per
Islam naam ka matlab hi salamati ka hai isme dhoke ki koi gunjaish nahi hai
Agar koi bhi istarah ki baat karta hai to
Logon me nafrat failane ka kaam karta