गुरुवार, 5 अक्तूबर 2017

गांधी के झूठ की कथा भाग- नौ


28.किसी भी दृष्टि से देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि इस देश की राष्ट्रभाषा बनने का अधिकार हिन्दी को है गांधीजी ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत मेँ हिन्दी को बहुत प्रोत्साहन दिया लेकिन जैसे ही उन्हेँ पता चला कि मुसलमान इसे पसन्द नही करते, तो वे उन्हेँ खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी का प्रचार करने लगे  

बादशाह राम, बेगम सीता और मौलवी वशिष्ठ जैसे नामोँ का प्रयोग होने लगा मुसलमानोँ को खुश करने के लिए हिन्दुस्तानी (फारसी लिपि में लिखे जाने वाली उर्दू भाषा) स्कूलोँ मेँ पढाई जाने लगी

29. भारत-पाकिस्तान विभाजन का समर्थन करने वाली दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामियासंस्था की स्थापना स्वयं मिस्टर गांधी ने 1925 में की थी

30."वन्दे मातरम" गाने पर प्रतिबन्ध ----1905 के भारत विभाजन विरोध के आंदोलन के दौरान " वन्दे मातरम" ने जनमानस को जोड़ने का काम किया अंग्रेज़ों को इस गान का ज्यादा मतलब तो समझ नहीं आया लेकिन वे इतना समझ गए कि इस गान का मातृभूमि के प्रति वंदना से कोई सन्दर्भ है।

1908 अंग्रेज़ सरकार ने ज्यों ही इसे प्रतिबंधित किया त्यों ही ये गान और ख्याति प्राप्त करने लगा। आम जनसभाओं में और कांग्रेस के सभी अधिवेशनों में गया जाने लगा। इन्ही अधिवेशनों में जब यह गान गया गया तो एक मुस्लिम ने गांधी के समक्ष यह आपत्ति दर्ज़ की कि यह उनके धर्म के विरुद्ध है,

गांधी ने पूरे देश की भावनाओं को ताक पर रख कर एक मुसलमान को इस गान का मतलब समझने की बजाये यह आदेश पारित कर दिया की अब से " जन गण मन …… गया जाये तथा "वन्दे मातरम" सभाओं में प्रतिबंधित कर दिया।

31."शिवा बावनी" कविता पर प्रतिबन्ध --- 52 छंदों की यह कविता जो हिन्दुओं को उनका गौरव याद दिलाने तथा हिन्दुओं को जोड़ने का एक बेहतरीन काम कर रही थी , "शिवा बावनी" में एक छंद हैं की यदि शिवाजी होते तो सारा देश मुस्लमान हो जाता - 
"कुम्करण असुर अवतारी औरंगजेब , कशी प्रयाग में दुहाई फेरी रब की  
तोड़ डाले देवी देव शहर मुहल्लों के ,लाखो मुसलमाँ किये माला तोड़ी सब की  
"भूषण" भणत भाग्यो काशीपति विश्वनाथ और कौन गिनती में भुई गीत भव की  
काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती शिवाजी होते तो सुन्नत होती सब की
मुसलमानो को खुश करने के लिए गांधी ने इस कविता पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया।

- विश्वजीत सिंह अभिनव अनंत
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत स्वाभिमान दल

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