11.भगत सिंह कि फांसी को रोकने के लिए आज़ाद ने ब्रिटिश सरकार पर दवाब बनाने का फैसला लिया इसके लिए आज़ाद ने गांधी से मिलने का वक्त माँगा लेकिन गांधी ने कहा कि वो किसी भी उग्रवादी से नहीं मिल सकते।
12. 23 मार्च 1931 को भगत
सिंह,सुखदेव और
राजगुरु को
फांसी दे
दी गयी
| पूरा देश इन
वीर बालकों
की फांसी
को टालने
के लिए
महात्मा गांधी
से प्रार्थना
कर रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं,
था लेकिन
गांधी जी
ने भगत
सिंह की
हिंसा को
अनुचित ठहराते
हुए देशवासियों
की इस
उचित माँग
को अस्वीकार
कर दिया।
13.हुतात्मा सुखदेव ने स्पष्ट शब्दों मे गाँधी पर यह आरोप लगाया था –“आप क्रान्तिकारी आन्दोलन को कुचलने में नौकरशाही का साथ दे रहे हैं ।”
14.इर्विन से समझौते की बातचीत के दौरान गाँधी ने भगत सिंह और उनके साथियों को फ़ाँसी से बचाने के लिये क्या प्रयत्न किये, इस बारे में बहुत सी अफ़वाहें फ़ैली हुई हैं । लेकिन राष्ट्रीय लेखागार की फ़ाइलों से कुछ नये तथ्य प्रकाश में आये हैं, जिन्हे मन्मथनाथ गुप्त ने ‘नवनीत’ में प्रकशित अपने लेख में उद्धृत किया है । इर्विन ने अपने रोजनामचे में लिखा है –
“दिल्ली मे जो समझौता हुआ, उससे अलग और अन्त में मिस्टर गाँधी ने भगत सिंह का उल्लेख किया, उन्होंने फ़ाँसी की सजा रद्द करने के लिये कोइ पैरवी नही की, साथ ही उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों में फ़ाँसी को स्थगित करने के बिषय में भी कुछ नही कहा ।” (फ़ाइल नं 5-45/1931 KW-2 गृहविभाग राजनीतिक शाखा)
20 मार्च को गाँधी वायसराय के गृह-सदस्य हर्बर्ट इमरसन से मिला । इमरसन ने भी रोजनामचे में लिखा है- “मिस्टर गाँधी की इस मामले में अधिक दिलचस्पी नही मालुम हुई । मैने उनसे यह कहा कि वह सबकुछ करें ताकि अगले दिनों में सभाएँ न हों और लोगो के उग्र व्याख्यानों को रोकें । इस पर उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी और कहा जो कुछ भी मुझसे हो सकेगा मैं करुँगा ।” (फ़ाइल नं 33-1/1931)
क्या अर्थ हो सकता है इसका, इस बात के अतिरिक्त कि गाँधी ने स्वयं अपरोक्ष रूप में ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया, हमारे महान क्रान्तिकारी भगत सिंह और उनके साथियों को फ़ाँसी दिलाने में । अगर गाँधी चाहते तो शायद भगत सिंह और उनके साथियों को फ़ाँसी न हुई होती । मगर उसने फ़ाँसी रोकने के लिये प्रयत्न करना तो दूर, स्थिति को सरकार के अनुकूल बनाए रखने में ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया ।
15.भगतसिंह को फांसी दिए जाने पर अहिंसा के महान पुजारी गांधी ने कहा था, ''हमें ब्रिटेन के विनाश के बदले अपनी आजादी नहीं चाहिए ।'' और आगे कहा, ''अगर इन नौजवानों को फाँसी पर लटकाना ही हैं तो कांग्रेस अधिवेशन के बाद ऐसा करने के बजाय उससे पहले ठीक होगा । इससे लोगों के दिलों में झूठी आशाएं नहीं बंधेगी।"
अर्थात् गांधी की परिभाषा में किसी को फांसी देना हिंसा नहीं थी ।
16. इसी प्रकार एक ओर महान् क्रान्तिकारी जतिनदास को अंग्रेजों ने बलिदान किया तो गांधी को उनके पार्थिक शरीर पर माला चढ़ाने को कहा गया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया अर्थात् उस नौजवान द्वारा खुद को देश के लिए कुर्बान करने पर भी गांधी के दिल में किसी प्रकार की दया और सहानुभूति नहीं उपजी, ऐसे थे हमारे अहिंसावादी गांधी ।
- विश्वजीत सिंह अभिनव अनंत
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत स्वाभिमान दल
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