4.गाँधी मरने की बार-बार प्रतिज्ञा लेकर भी क्यों नहीं मरा ?
1921 में सत्याग्रह शुरू करते समय उसने कहा था कि अगर मैंने एक साल में स्वराज ना लिया तो मेरी लाश समुद्र पर तैरती नजर आयगी । स्वराज्य नहीं मिला, मगर गाँधी जीवित रहा ।
नमक सत्याग्रह में डाँडी को मार्च करते समय घोषणा की थी कि अगर मैं सफ़ल ना हुआ तो साबरमती आश्रम में वापस नहीं आऊँगा । गाँधी असफ़ल रहा और साबरमती लौटने की बजाय सेवाग्राम नाम का दूसरा आश्रम बसा लिया । क्या यह उसकी प्रतिज्ञा की आत्मा का हनन नही था? क्या यह गोमाता के दूध की बजाय बकरी का दूध पीने की तरह उसकी प्रतिज्ञा के मात्र अक्षर का पालन नहीं था?
फ़िर इसी गाँधी ने ऐलान किया था कि पाकिस्तान बना तो मेरी लाश पर बनेगा । क्या हुआ सभी जानते हैं, पाकिस्तान बना, मगर गाँधी जीवित ही रहा । पाकिस्तान बना, लाशों पर ही बना पर वो लाशें निरीह, निरअपराध हिन्दुस्तानी सर्वसामान्य जनमानष की थीं । यह इस देश का दुर्भाग्य नहीं तो क्या ?
- विश्वजीत सिंह अभिनव अनंत
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत स्वाभिमान दल
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