|| साधना
पद्धति
||
|| ओ३म्
ध्वनि
||
सभी साधक बैठ जाये तथा ओ३म का तीन बार दीर्घ उच्चारण करें |
|| धर्म
ध्वज: दीप स्तुति: ||
दीप ज्योति: परं ज्योति:, दीपज्योतिर्जनार्दन: |
दीपो हरतु में पापं, दीपज्योर्तिनमोऽस्तुते ||
शुभं करोति कल्याणम् , आरोग्यं सुखसम्पदा: |
धर्मस्यशत्रुविनाशाय, आत्मज्योति: नमोऽस्तुते ||
आत्मज्योति: प्रदीप्ताय, ब्रह्मज्योति: नमोऽस्तुते |
आत्मज्योति: प्रदीप्ताय, ब्रह्मज्योति: नमोऽस्तुते |
ब्रह्मज्योति: प्रदीप्ताय, धर्मज्योति: नमोऽस्तुते ||
|| ईश्वर
स्तुति:
||
ॐ नमः सच्चिदानंदरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने |
ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमांगल्यमूर्तये ||
ॐ, सत्य, चित् और आनंद स्वरूप उस परमात्मा को जो परम ज्योतिर्मय स्वरुप है साथ ही जगत के लिए मंगलकारी मूर्ति स्वरूप है, हम नमस्कार करते हैं |
यं वैदिका मंत्रदृशः पुराणाः इन्द्रं यमं मातरिश्वानमाहुः |
वेदान्तिनोऽनिर्वचनीयमेकम् यं ब्रह्म शब्देन विनिर्दिशन्ति ||
प्राचीन काल के मंत्र दृष्टा ऋषियों ने जिसे इन्द्र, यम, मातरिश्वान् कहकर पुकारा
और जिस एक अनिर्वचनीय को वेदांती ब्रह्म शब्द से निर्देश करते हैं |
गणेशेति केचित् कतिचित् दुर्गा मातेतिभक्त्या |
शैवायमीशं शिव इत्यवोचन् यं वैष्णवा विष्णुरीति स्तुवन्ति |
जिस जगत के स्वामी को कोई गणेश तो कोई दुर्गा माता कहकर भक्ति करते है |
शैव जिसको शिव और वैष्णव जिसको विष्णु कहकर स्तुति करते है |
एको देव: सर्वभूतेषु गूढ: सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा |
कर्माध्यक्ष: सर्वभूताधिवास: साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च ||
एक ही देव सभी पदार्थों में विराजमान है (गूढ़ः = छिपा है , रहा है ) वह सर्वव्यापी है और वह अन्तर्यामी है । (सभी जीवों में बसता है ) वही कर्मों का अध्यक्ष है वही सब में वास करता है और सबका साक्षी है वही सबकी चेतना है और वह निर्गुण है ।
स: परमात्मा साकार अस्ति निराकार अस्ति च एतस्मात् पर: अपि अस्ति |
यं प्रार्थयन्ते जगदीशितारम् स एक एव प्रभुरद्वितीयः ||
वह परमात्मा साकार है, निराकार है और इन दोनों से परे भी है | वह प्रभु एक ही है और अद्वितीय है,उस परमात्मा की हम प्रार्थना- स्तुति करते है |
|| गायत्री मन्त्र || (बारह बार सस्वर जप करें)
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् |
तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू | तुझ से ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता है तू ||
तेरा महान तेज है, छाया हुआ सभी स्थान | सृष्टि की वस्तु वस्तु में, तू हो रहा है विद्यमान ||
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया | ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला ||
|| नमस्कार ||
ॐ नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये, सहस्रपादाक्षिशि रोरुबाहवे।
सहस्रनाम्रे पुरुषाय शाश्वते, सहस्रकोटीयुगधारिणे नमः॥
नमन तुम्हें प्रभु! अनन्तरूपी, अनन्त बाहु शिर- नेत्र धारी। अनन्त हैं नाम तुम एक शाश्वत,
अनन्त ब्रह्माण्ड के तुम प्रभारी| ॐ सत चित् आनन्द स्वरूप परमात्मा को हम नमन करते है |
|| शुभकामनाएँ ||
ॐस्वस्ति प्रजाभ्य: परिपालयन्ताम् न्याय्येन मार्गेण महीं महीशा: |
गो-धर्मात्मा: शुभमस्तु नित्यम् लोका: सर्वेसज्जना: सुखिनो भवन्तु ||
हे परमात्मा प्रजा का कल्याण हो, राज्यकर्ता लोग न्याय के मार्ग से पृथ्वी का पालन करें,
गाय और धर्मात्माओं का सदा भला हो | संसार के सभी सज्जन सुखी हो |
ॐ तेजोऽसि तेजो मयि धेहि |
हे परमात्मा ! आप तेजरूप हैं, हमें तेज (आत्मिक शक्ति) से संपन्न बनाइए |
ॐ वीर्यंमसि वीर्यं मयि धेहि |
हे परमात्मा ! आप वीर्यवान हैं, हमें पराक्रमी – साहसी बनाइए |
ॐ बलमसि बलं मयि धेहि |
हे परमात्मा ! आप बलवान हैं, हमें बलशाली बनाइए |
ॐ ओजोऽस्योजो मयि धेहि |
हे परमात्मा ! आप ओजवान हैं, हमें ओजस्वी (शारीरिक बल और आभायुक्त) बनाइए |
ॐ मन्युरसि मन्युं मयि धेहि |
हे परमात्मा ! आप मन्यु रूप (अनीति अत्याचार के प्रति क्रोध करने वाले) हैं, हमें भी अनीति का प्रतिरोध करने की क्षमता दीजिए |
ॐ सहोसि सहो मयि धेहि ||
हे परमात्मा ! आप कठिनाईयों को सहन करने वाले हैं | हमें भी कठिनाइयों में अडिग रहने की, उन पर विजय पाने की शक्ति दीजिए |
सभी एक साथ मिलकर शान्त भाव से सस्वर शांतिपाठ करें
|| शान्तिपाठ ||
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः, पृथ्वी शान्तिरापः, शान्तिरोषधयः शान्तिः | वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः, शान्तिर्ब्रह्मशान्ति:, सर्व शान्तिः, शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि |
ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः ||
द्युलोक, अन्तरिक्ष और पृथ्वी सभी शान्ति एवं कल्याण देने वाले हों | सभी जल, औषधियाँ और वनस्पतियाँ हमें सुख- शान्ति प्रदान करें | सभी देवता, परब्रह्म परमेश्वर और सभी सम्मिलित रूप में शान्ति देने वाले हों | आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक सभी प्रकार की शान्ति हो | वह शान्ति हममें सदैव वृद्धि को प्राप्त हो |
शान्तिपाठ के बाद सभी अपने- अपने स्थान पर खड़े हो जाये तथा ढोल-नगाडे बजाये अथवा शंखनाद या घण्टानाद करें, इसके बाद उच्चस्वर में जयघोष बोलकर साधना सम्पन्न की जायें |
|| जयघोष ||
1.जो बोले सो अभय- सनातन धर्म की जय |
2. सनातन धर्म की - जय |
3. सनातन धर्म के देवी देवताओं की - जय |
4. यज्ञ भगवान की - जय |
5. अपने अपने माता पिता की - जय |
6. भारतीय संस्कृति की - जय |
7. पवित्र वेद धर्म शास्त्रों की - जय |
8. धर्म रक्षक अस्त्रों शस्त्रों की - जय |
9. धर्म बचेगा - हम बचेगे |
10. धर्म की रक्षा कौन करेगा- हम करेगे, हम करेगे |
11. जन्म जहाँ पर- हमने पाया |
12. अन्न जहाँ का- हमने खाया |
13. वस्त्र जहाँ के - हमने पहने |
14. ज्ञान जहाँ से- हमने पाया |
15. वह है प्यारा- देश हमारा |
15. देश की रक्षा कौन करेगा- हम करेगे, हम करेगे |
16. शिक्षित बनेगे- संगठित रहेगे |
17. हिन्दू हिन्दू - एक समान |
18. नर और नारी- एक समान |
19. जाति वंश सब- एक समान |
20. धर्म की - जय हो |
21. अधर्म का - नाश हो |
22. प्राणियों में- सद्भावना हो |
23. सनातन धर्म का- कल्याण हो |
24.हर हर - महादेव |
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