शनिवार, 27 मई 2017

क्रान्तिपुञ्ज वीर सावरकर

1. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में ब्रिटेन की रानी विक्टोरिया की मृत्यु पर नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें? क्या किसी भारतीय महापुरुष के निधन पर ब्रिटेन में शोक सभा हुई है.?
2. वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि गुलामी का उत्सव मत मनाओ...
3. विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी...
4. वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी वस्त्रों का दहन किया, तब बाल गंगाधर तिलक ने अपने पत्र केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र 'इन्डियन ओपीनियन' में गाँधी ने निंदा की थी...
5. सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया...
6. सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण पुणे के फर्म्युसन कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुरमाना किया... इसके विरोध में हड़ताल हुई... स्वयं तिलक जी ने 'केसरी' पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा...
7. वीर सावरकर ऐसे पहले बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद ब्रिटेन के राजा के प्रति वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया...
8. वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा ग़दर कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया...
9. सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे '1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था...
10. '1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी... भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी...
11. वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय आठ जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे...
12. सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदी बनाकर भारत लाया गया...
13. वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो आजन्म कारावास की सजा सुनाई थी...
14. सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- "चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया."
15. वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला...
16. वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी..
17. वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा...
18. वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-
'आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका.
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.'
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है..
19. वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद ससम्मान रिहा कर दिया... देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था...
20. वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी थे जब उनका 26 फरवरी 1966 को उनका स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था...
21.वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था....
22. वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया...
23. वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया..
वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था जबकि गाँधी ने कालापानी की उस जेल में कभी दस मिनट चरखा नही चलाया..
24. वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया...
पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है।

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

आपको कौन सा रास्ता सही लगता है.. गांधी या सावरकर

गाँधी : भारतवासियों! शत्रु से प्यार करो और उस पर पूर्ण विश्वास रखो।
सावरकर : शत्रु पर प्यार या विश्वास भूल से भी मत करो।
गाँधी : अहिंसा का रास्ता अपनाओ। कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे करो।
सावरकर : आत्मरक्षा हिंसा नहीं कहलाता। मूर्ख हिन्दुओं! एक गला कटा तो आगे करने के लिए दूसरा गला बचेगा ही नहीं।
गाँधी : मैं एक हिन्दू हूँ और हिन्दुओं के सभी भगवान शांति का सन्देश देते हैं।
सावरकर : तुम खोखले हिन्दू हो। प्रभु श्रीराम के हाथ में धनुष है तो श्रीकृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र है।सज्जनों की रक्षार्थ ईश्वर को भी शस्त्र धारण करने पड़ते हैं।
गाँधी : शस्त्र उठाना नितांत अनुचित है। शत्रु से लड़ने की बजाय उसके दुर्गुणों से लड़ो।
सावरकर : युद्ध में गुण-अवगुण नहीं तलवारें टिकी रहती हैं और जीतती भी हैं। सीमायें तलवारों से निर्धारित की जाती है गुणों-अवगुणों से नहीं।
गांधी : तलवारें तो होनी ही नहीं चाहिए। ह्रदय परिवर्तन पर विश्वास रखो और शत्रु का दिल जीत लो।
सावरकर : जो आपकी हत्या करने की ठान चुका हो उसका दिल जीता नहीं जा सकता। हे हिन्दुओं! अफज़ल खान का ह्रदय परिवर्तन संभव नहीं था तभी तो शिवाजी को उसका ह्रदय चीरना ही पड़ा।
अब आप ही चुनें कि इनमें से आपको कौन सा रास्ता सही लगता है..
गांधी
या फिर
सावरकर
आखिर आप स्वयं ही आपके जीवन के शिल्पकार हैं

जश्न किस बात का

आज ही के दिन हिंदुओं को बताया गया कि-
तुम सवर्ण हो ,
तुम OBC हो ,
तुम SC हो ,
तुम ST हो ,
तुम पिछड़ा वर्ग हो ,
तुम दलित हो ,
तुम अति पिछड़ा वर्ग हो ,
तुम आदिवासी हो ,
जबकि ये सब के सब हिन्दू थे,
पर मुसलमानो को बस एक शब्द बताया गया कि-
तुम सिर्फ अल्पसंख्यक हो ,
जबकि उनमे भी शिया , सुन्नी , अहमदिया, बरेलवी. अल हदीसी, हयाती , पठान , मुगल , धुनिया, कुरैशी, सैय्यद , सिद्दीकी , ममाती, देवबंदी , वहाबी जैसे तमाम थे ,
हिंदुस्थान बंटा था 15 अगस्त 1947 में ,
हिदू बंटा 26 जनवरी 1950 में ,,
फिर भी ज़रा हिंदुओं का जश्न तो देखो ,,, ना जाने किस बात का ???

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल

धार्मिक मसलों का हल

धार्मिक मसलों का हल केवल धर्मी लोग ही कर सकते हैं अधर्मी ( तथाकथित सेक्युलर धर्मनिर्पेक्ष व जिहादी मुल्ले-मौलवी ) लोग नहीं. ये अधर्मी लोग जिस किसी भी धार्मिक मामले में टांग अड़ायेंगे वहां तो बनती हुई बात भी बिगड़ जायेगी. इन अधर्मियों की तो राजनीति चलती ही इस पर है कि - धार्मिक विवादों कभी हल न होने दिया जाय. धार्मिक विवादों को जितना अधिक लटकाया जाता है उससे और अधिक विवाद बढ़ते हैं.
अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर का पुनर्निर्माण भी एक ऐसा ही विवाद है जो अधर्मियों के अनावश्यक हस्तक्षेप के कारण बढ़ता जा रहा है. इस विवाद के कारण अब तक हजारों लोगों की जान जा चुकी है और खरबों रूपए की संपत्ति नष्ट हो चुकी है. हिन्दू हों या मुस्लिम सभी इस मसले का सर्वमान्य स्थाई हल चाहते हैं क्योंकि झगडे में नुकसान दोनों पक्षों का हो रहा है.
अगर केवल धर्मी लोग चर्चा करें तो इसका अवश्य निकलेगा. इसका सबसे उत्तम और सर्वमान्य हल जो हो सकता है अब उसकी चर्चा करते हैं. मेरे ख़याल से इस बात का विरोध भी मुस्लिम के बजाय अधर्मी ही करेंगे. जैसा कि - सर्व विदित है कि अरब साम्राज्यवादी इस्लामिक हमलावरों ने हिन्दुस्थान पर हमला कर हजारों मंदिर तोड़े और करोड़ों हिन्दुओं को अपना धर्म छोड़ने पर मजबूर किया.
अब उन सब बातों को स्मरण रखते हुए नए सिरे से भारत का निर्माण किया जाय. अयोध्या, मथुरा, काशी सहित हिन्दुओं के ऐसे तीस हजार सबसे प्रमुख केंद्र हैं जहां विवादास्पद मस्जिदें बनी हुई हैं और इनके अलावा भी ऐसे लाखों मंदिरों की लिस्ट है जिनको तोड़कर मस्जिद, दरगाह या कुछ और बनाने का दावा किया जाता है. इस मसले पर अपने अपने धर्म के सर्वमान्य लोग मिलकर चर्चा करें.
अगर दोनों धर्मों के धार्मिक लोग मिलकर यह तय कर लें कि -
अखण्ड भारत के विभाजन की शर्तों के अनुसार या तो भारत के सभी मुसलमान पाकिस्तान चले जाये और पाकिस्तान के सभी हिन्दू भारत बुला लिये जाये
या फिर हिन्दुओं के इन तीस हजार प्रमुख मंदिरों से मुस्लिम अपना दावा वापस लेकर उन्हें हिन्दू समाज को सौप दें क्योंकि उनके पूर्वज भी भारतीय हिन्दू ही है और उसके बाद कोई भी हिन्दू किसी भी अन्य विवादास्पद मस्जिद पर कभी भी कोई दावा न करने का लिखित बचन दें तो यह हिन्दू मुस्लिम झगडा हमेशा के लिए समाप्त हो सकता है और उसके बाद सभी हिंदुस्थानी तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं.
लेकिन अगर इस मसले को हल किये बिना, इसे यूँ ही लटकाए रखा गया तो यह मसला नासूर बनकर एक दिन देश को बर्बाद कर देगा. जो अधर्मी धर्मनिरपेक्ष व मुल्ले-मौलवी लोग हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का नाटक करते हैं, वास्तव में वही लोग इस भाईचारे के सबसे बड़े दुश्मन हैं.

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

बैरिस्टर भीमराव अंबेडकर

जिस समय चन्द्रशेखर आज़ाद महान साईकिल ले कर चलता था उस समय भीमराव अम्बेडकर भारत और इंग्लैण्ड फ्लाइट से आते जाते थे,,
जब राम प्रसाद बिस्मिल जी भुने चने खा कर क्रान्ति की ज्वाला में खुद जल रहे थे तब भीमराव अंबेडकर ब्रिटेन के गवर्नर के शाही भोज में शामिल होते थे,,
जब सारा भारत स्वदेशी के नाम पर विदेशी कपड़ों की होली जला रहा था तब भीमराव अम्बेडकर कोट पैंट और टाई पहन कर चलते थे,,
जब भगत सिंह एक वकील को मोहताज़ था तब बैरिस्टर वकील भीमराव अंबेडकर अंग्रेज अफसरों के मुकदमे लड़ रहे थे ....
और अंत में वही बन गया भारत भाग्य विधाता ........
उसी को मिली भारत की नींव भरने की जिम्मेदारी ....
अंजाम सब देख रहे हैं,,
घर जल रहा है अपने खुद के ही चिरागों से ......

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल

गीता जयंती के उपलक्ष्य में

।। ॐ ।। गीता जयंती के उपलक्ष्य में
गीता जयंती . भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह दिव्य सन्देश तब दिया था जब वह दुविद्या में था । एक ओर मोह था और दूसरी ओर युद्ध क्षेत्र में आये योद्धा का कर्तव्य । मोह ने अर्जुन को इतना निर्जीव बना दिया था कि वह अपना धुनष तक नही उठा पा रहा था , इस किंकर्तव्य की स्थिति में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का दिव्य सन्देश दिया और महाभारत का युद्ध जीत लिया गया ।
ज्ञान की इस अलौकिक धरोहर को अगर हम ने अभी तक नहीं पढ़ा और समझा तो गीता जयंती के उपलक्ष्य में गीता के 18 अध्याय आगामी 18 दिनों के पढ़ें और जाने कैसे जीवन के युद्ध क्षेत्र में जब भी कोई दुविद्या हो तब उससे अर्जुन की भांति कैसे उस पर विजय पायी जाये ।
श्री गीता जयंती पर सभी सनातन धर्मी मनुष्यों का अभिवादन एवं शुभकामनाएँ।ईश्वर करें हमारे जीवन में भी कृष्ण चेतना घट जाये और हम अपने कर्तव्य पथ पर आरूढ़ हो जाये। ॐ ॐ ॐ
- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल

शत-शत नमन बलिदानी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी

अनगिनत झूले फांसी के फंदे पर, अनगिनत ने गोलिया खाई थी, लेकिन विकृत मानसिक सोच रखने वाले गांधीवादी कहते है कि चरखे से आजादी पाई थी। शत-शत नमन बलिदानी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जी, बलिदान- 17 दिसंबर,  1927,  गोंडा जेल, उत्तर प्रदेश) भारत के अमर बलिदानी प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी खजाना लूटने की योजना बनायी थी। योजनानुसार दल के प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेज़ सरकार ने मुकदमा चलाकर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ाँ आदि को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई।
जन्म तथा शिक्षा:
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल के पाबना ज़िले के भड़गा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम क्षिति मोहन शर्मा और माता बसंत कुमारी था। बाद के समय में इनका परिवार 1909 ई. में बंगाल से वाराणसी चला आया था, अत: राजेन्द्रनाथ की शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से ही हुई। राजेन्द्रनाथ के जन्म के समय पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' में इतिहास विषय में एम. ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे।
क्रांतिकारियों से सम्पर्क:
जिस समय राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी एम. ए. में पढ़ रहे थे, तभी उनका संपर्क क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुआ। सान्याल बंगाल के क्रांतिकारी 'युगांतर' दल से संबद्ध थे। वहाँ एक दूसरे दल 'अनुशीलन' में वे काम करने लगे। राजेन्द्रनाथ इस संघ की प्रतीय समिति के सदस्य थे। अन्य सदस्यों में रामप्रसाद बिस्मिल भी सम्मिलित थे। 'काकोरी ट्रेन कांड' में जिन क्रांतिकारियों ने प्रत्यक्ष भाग लिया, उनमें राजेन्द्रनाथ भी थे। बाद में वे बम बनाने की शिक्षा प्राप्त करने और बंगाल के क्रांतिकारी दलों से संपर्क बढाने के उद्देश्य से कोलकाता गए। वहाँ दक्षिणेश्वर बम फैक्ट्री कांड में पकड़े गए और इस मामले में दस वर्ष की सज़ा हुई।
काकोरी काण्ड:
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में बुलाये जाने लगे थे। क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में एक गुप्त बैठक हुई। बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी। इस योजनानुसार दल के ही प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया गया।
सज़ा:
बाद में अंग्रेज़ी हुकूमत ने उनकी पार्टी 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन' के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु दण्ड (फाँसी की सज़ा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार वर्षकी सज़ा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था। 'काकोरी काण्ड में लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल, 1927 को जलियांवाला बाग़ दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह तथा अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को एक साथ फांसी देने का निर्णय लेते हुए सज़ा सुनाई।
सूबेदार से झड़प:
काकोरी काण्ड की विशेष अदालत आज के मुख्य डाकघर में लगायी गयी थी। काकोरी काण्ड में संलिप्तता साबित होने पर लाहिड़ी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से लखनऊ लाया गया। बेड़ियों में ही सारे अभियोगी आते-जाते थे। आते-जाते सभी मिलकर गीत गाते। एक दिन अदालत से निकलते समय सभी क्रांतिकारी 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है', गाने लगे। सूबेदार बरबण्डसिंह ने इन्हें चुप रहने को कहा, लेकिन क्रांतिकारी सामूहिक गीत गाते रहे। बरबण्डसिंह ने सबसे आगे चल रहे राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का गला पकड़ लिया, लाहिड़ी के एक भरपूर तमाचे और साथी क्रांतिकारियों की तन चुकी भुजाओं ने बरबण्डसिंह के होश उड़ा दिए। जज को बाहर आना पड़ा। इसका अभियोग भी पुलिस ने चलाया, परन्तु वापस लेना पड़ा।
लाहिड़ी-जेलर संवाद:
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। 6 अप्रैल, 1927 केा फाँसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जेलर ने पूछा कि- "प्रार्थना तो ठीक है, परन्तु अन्तिम समय इतनी भारी कसरत क्यो?" राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया- व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूँ? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिलें, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध में काम आ सके।
बलिदान:
अंग्रेज़ी सरकार ने डर से राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही 17 दिसम्बर, 1927 को फांसी दे दी। बलिदानी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने के पहले 'वन्देमातरम' की जोरदार हुंकार भरकर जयघोष करते हुए कहा- मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ। क्रांतिकारी की इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर अंग्रेज़ ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें अब चैन से नहीं जीने देंगे।
वन्दे मातरम्

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल

धर्मयुद्ध में तटस्थ रहकर अपराधी न बनें

अभी ५२०० वर्ष पुरानी घटना है. दुर्योधन के साथ वार्ता विफल होने के पश्चात् युद्ध अवश्यम्भावी हो गया था. श्रीकृष्ण ने विश्व के समस्त राजाओं के पास अपने दूतों को पाण्डवों के पक्ष में युद्ध करने का निमन्त्रण लेकर भेजा.
धर्मनिष्ठ राजा तो इसी दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे.उन्होंने सोचा कि स्वयं श्रीकृष्ण का निमन्त्रण भला कौन मूर्ख ठुकराएगा? उन्होंने अति प्रसन्नता पूर्वक युद्ध के निमन्त्रण को स्वीकार कर लिया. परन्तु कुछ धर्मभ्रष्ट राजाओं ने कहा कि मै कृष्ण वृष्ण को नहीं मानता. कृष्ण तो केवल अपने पक्ष को अच्छा बताते हैं. केवल अपने धर्म को अच्छा बताते हैं. उनकी सोच एकपक्षीय है. जबकि हम ठहरे ऊंची और व्यापक सोच वाले. हम ये सब नहीं मानते. हमारे लिए सब बराबर हैं.... तमाम कौरव तो हमारे दोस्त हैं... वो तो बहुत अच्छे हैं... घर आते हैं तो बहुत मीठी मीठी बातें करते हैं...... हमको तो बिरयानी खिलाते हैं.... आदि आदि...... इसलिए हम तो साहब न्यूट्रल रहेंगे... सेक्युलर रहेंगे.... .
.
इसपर श्रीकृष्ण के दूतों ने कहा कि द्वारिकाधीश ने एक सन्देश और दिया है. उन्होंने यह भी कहा है कि आगामी युद्ध धर्म युद्ध है.. और इसमें जो भी धर्म के पक्ष में युद्ध करने नहीं आएगा वह अधर्म के पक्ष में माना जायेगा और उसके साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जायेगा जैसा दुर्योधन के साथ.....
आज पुनः हम सबको धर्म और अधर्म के बीच निर्णायक युद्ध में सहभागी बनने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो रहा है....और इसका निर्णय होने में भी बहुत समय नहीं लगेगा.
हम सभी को स्पष्ट रूप से तय करना है कि हम धर्म के पक्ष में हैं या अधर्म के.....
किसी भी कारण से तटस्थ रहने वाले लोग अधर्म के पक्ष में माने जायेंगे और इतिहास के पन्नों पे अपना नाम एक अपराधी के तौर पर दर्ज करवा लेंगे. बोलिए,
भारत माता की जय !!!

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

हमारे विद्यालयों में इन विषयों की पढाई क्यों नहीं होती

हमारे विद्यालयों में इन विषयों की पढाई क्यों नहीं होती
(1.) यदि हमारा ज्ञान-विज्ञान एवं इतिहास इतना गौरवशाली एवं समृद्ध हैतो भारत के छात्रों को इस जानकारी सेवंचित क्यों रखा जाता है ???
(2.) अंको का आविष्कार भारत में 300 ई. पू.हुआ। (Pro. O. M. Mathew, Bhavan'sJournal)
(3.) शून्य (जीरो, सिफर) की आधुनिक खोज भारत में ब्रह्मगुप्त ने की।
(4.)अंकगणित का आविष्कार 200ई.पू. भास्कराचार्य ने किया। (EncyclopaediaBritannica)
(5.) बीजगणित का आविष्कार भारत मेंआर्यभट्ट ने किया। (EncyclopaediaBritannica)
(6.) सर्वप्रथम ग्रहों की गणना आर्यभट्ट ने499 ई. पू. में की।(JewishEncyclopaedia)
(7.) मोहनजोदडों व हडप्पा में मिले अवशेषों केअनुसार भारतीयों को त्रिकोणमिति वरेखागणित का 2500ई. पू. में ज्ञान था।
(8.) जर्मन लेखक थॉमस आर्य के अनुसार सिन्धुघाटी सभ्यता में मिले भार-माप यन्त्रभारतीयों के दशमलव प्रणाली के ज्ञानको दर्शाते हैं।
(9.) समय और काल की गणना करनेवाला विश्व का पहला कैलेण्डर भारत मेंलतादेव ने 505 ई. पू. सूर्य सिद्धान्त नामकअपनी पुस्तक में वर्णित किया।
(10.) न्यूटन से भी पहले गुरुत्वाकर्षणकासिद्धान्त भास्कराचार्य ने प्रतिपादितकिया था। (Jewish Encyclopaedia)
(11.) 3000 ई. पू. लोहे के प्रयोग के प्रमाणवेदों में वर्णित है, अशोक स्तम्भ भारतीयों केतत्त्वज्ञान का स्पष्ट प्रमाण है। (TheCurrent Science)
(12.) सिन्धु घाटी सभ्यता में मिले प्रमाणसिद्ध करते हैं कि भारतीयों को 2500 ई. पू.ताम्बे तथा जस्ते की जानकारी थी।
(13) विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं एवंरासायनिक रंगों का प्रयोगपाँचवी शताब्दी में भारतद्वारा किया गया। (National ScienceCenter, New Delhi)
(14.) विश्व का सबसे पहला औषधि विज्ञानभारतीयोंने आयुर्वेद के रूप में किया। चरक ने2500 वर्ष पूर्व औषधि विज्ञान को आयुर्वेदके रूप में संकलित किया।
(15.) लिम्बा बुक ऑफ रिकाॉर्ड्स के अनुसार400 ई. पू. सुश्रुत (भारतीय चिकित्सक) नेसर्वप्रथम प्लास्टिक सर्जरी का प्रयोगकिया।
(16.) राईट ब्रदर्स से भी अनेक वर्ष पूर्वमहर्षि दयानन्द सरस्वती के पटु शिष्यश्री बापूजी तलपदे महाराष्ट्र निवासी नेमुम्बई के चौपाटी स्थान पर वैदिक विधि सेबना वर्तमान युग का प्रथम विमान बनाकरउडाया था।
(17.) विश्व का पहले लेखन कार्य का प्रमाण5500 वर्ष पूर्व हडप्पा संस्कृति के अन्तर्गतमिलता है। (Science Reporter, June1999)
(18.) संस्कृत दुनिया की सबसे पहली भाषा हैतथा यह सभी यूरोपियन भाषाओंकी जननी है। संस्कृत ही कम्प्यूटर सॉप्टवेयरहेतु सर्वाधिक उपयुक्त भाषा है।(ForbesMagazine, July 1987)
(19.)विश्व का पहला विश्वविद्यालयतक्षशिला के रूप में 700 ई. पू. भारत मेंकार्यरत था। जहाँ पर दुनिया भर के 10,500विद्यार्थी 60 विषयों का अध्ययन करते थे।
(20.) बारूद की खोज 8000 ई. पू. सर्वप्रथमभारत में हुई थी।
(21.) वनस्पतिशास्त्रकी उत्पत्ति सर्वप्रथम भारत में हुई,जिसका प्रमाण वेदों में सुनियोजित रूप सेवर्गीकृत विभिन्न वनस्पतियों से मिलता है।
(22.) दुनिया की सबसे पहली सुनियोजितआवासीय
सभ्यता हडप्पा और मोहन जोदडो केरूप में 2500 ई. पू. भारत में स्थापित हुई।
(23.) सूर्य से पृथिवी पर पहुँचने वाले प्रकाशकी गणना भास्कराचार्य ने सर्वप्रथम भारतमें की।
(24.) यूरोपीय गणितज्ञों से पूर्वही छठी शताब्दी में बौधायन ने पाई के मानकी गणना की थी जो कि पाइथागोरस प्रमेयके रूप में जाना जाता है।
हमें झूठा इतिहास औरझूठी जानकारिया क्यों दी जाती है |
आइए, वर्षों से भारतीयों को अनेक ज्ञान सेवंचित रखने के लिए चलाए जा रहे इस सुनियोजित षड्यन्त्र का हम सब मिलकर प्रतिकार करें।

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

मिस्टर गांधी की दक्षिण अफ्रीका में भूमिका ?

सरकारी टुकड़ों पर पलने वाले इतिहासकार लिखते है कि गांधी ने अफ्रीका में अफ्रीकनों व भारतीयों के हित में सत्याग्रह आंदोलन चलाया था।
इस कथित सत्याग्रह आन्दोलन के लिए गांधीवादियों द्वारा भारत से बड़ी मात्रा में धन संग्रह कर अफ्रीका ले जाया गया।
अब यह प्रश्न उठता है कि भारत से जो धन सत्याग्रह आंदोलन के नाम पर अफ्रीकनों व भारतीयों के हित के लिए अफ्रीका ले जाया गया, वो धन उनके हित में लगा भी था अथवा नहीं, यह एक संदेहस्पद विषय हैं।
क्योंकि जब हम इतिहास का निश्पक्ष अंवेष्ण करते है तो पाते हैं कि मोहनदास गांधी तो अफ्रीका में ब्रिटिशों की खुलकर सहायता कर रहे थें। 
गांधी, दक्षिणी अफ्रीका के जुलू आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से स्वयंसेवक बने, बाद में दक्षिण अफ्रीका में ही ब्रिटिशों से अपनी स्वतंत्रता का संघर्ष कर रहे बोअरों के आन्दोलन का दमन कराने के लिए ब्रिटिश की ओर से बोअर युद्ध में भी सक्रीय भाग लिया था।
तो फिर दक्षिण अफ्रीका में अफ्रीकनों व भारतीयों के हित की रक्षा के लिए सत्याग्रह चलाने वाले गांधी कौन थे ?
क्या किसी देश के मूल निवासियों के स्वतंत्रता आन्दोलन को दबाकर अपना हित चाहना ही सत्याग्रह कहलाता हैं ?
इस प्रश्न का उत्तर कौन देगा ?
- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

क्रान्ति संकल्प दिवस एक जनवरी

1 जनवरी क्रान्ति संकल्प दिवस
परतंत्र भारत में असहयोग आन्दोलन के जन्मदाता, 1669 की क्रान्ति के जननायक
राष्ट्र-धर्म रक्षक वीर गोकुल सिंह और उनके सात हजार क्रान्तिकारियों के बलिदान का दिवस
सन 1666 में इस्लामिक पिशाच औरंगजेब के अत्याचारों से हिन्दू जनता त्राहि- त्राहि कर रही थी। उस समय वीर गोकुल सिंह जी के आवाहन पर किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया और विदेशी सत्ता के विरूद्ध स्वतंत्रता समर का उद्घोष कर दिया।
मुगलों की तीन लाख की सेना को गोकुल सिंह की 20 हजार की सेना ने परास्त कर दिया। लेकिन छठवें दिन के महायुद्ध में दो अतिरिक्त विशाल सेनाओं के मुगलों के पक्ष में आ जाने के कारण गोकुल सिंह सहित 7 हजार साथियों को बंदी बना लिया गया।
औरंगजेब ने कहा : इस्लाम कबूल कर लो और कुरान के रास्ते पर चलो।
सभी ने कहा : धिक्कार है तुझे और तेरे इस्लाम को। हम इस्लाम कभी नहीं अपनाएंगे।
1 जनवरी 1670 को गोकुल सिंह सहित सभी क्रान्तिकारियों की इस्लामिक नरपिशाचों द्वारा टुकड़े टुकड़े कर हत्या कर दी गई।
वीर बलिदानियों को भारत स्वाभिमान दल का कोटि कोटि नमन करता हैं।
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भारत स्वाभिमान दल के तत्वाधान में विभिन्न राज्य ईकाइयों द्वारा 1 जनवरी को *क्रान्ति संकल्प दिवस* आयोजित किया जा रहा हैं।
आप भी अपने क्षेत्रों में क्रान्ति संकल्प दिवस का आयोजन कर देश के अमर बलिदानियों के अधूरे स्वप्नों को पूरा करने का संकल्प लें।

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

इस्लामिक आतंकवादी तैमूर लंगड़ा और दूध का कर्ज

एक बालक मदरसे से पढकर आया और अपनी अम्मी से पूछा, ‘अम्मी मैंने सुना है कि मुझे नवजात अवस्था में किसी काफिर औरत ने अपना दूध पिलाया था।’’
‘‘हां मेरे लाल।’’
‘‘मैं उसे देखना चाहता हूं, आजकल कहां रहती हैं।’’
‘‘मगर क्यों?’’
‘‘दूध का कर्ज अदा करना है।’’
‘‘अच्छी बात है।’’ उस औरत ने दायी का पता बता दिया। उस बालक ने जाकर उस औरत से कहा कि ‘मैंने सुना है कि तुमने मुझे अपना दूध पिलाया है, इसका कर्ज मुझे चुकाना है, इसलिए आप इस्लाम कबूल करें।’
उस औरत ने इस्लाम कबूलने से मना कर दिया तो उस बालक ने उस औरत के स्तन काटकर उसकी हत्या करते हुए कहा, ‘‘हरामजादी मुझे अपना दूध पिलाकर काफिरों के प्रति मेरे दिल में हमदर्दी भरना चाहती थी। भला हो उस्ताद का कि उसने मुझे अल्लाह का सही रास्ता बता दिया...’’ उसके बाद उसने अपनी अम्मी का सिर भी कलम किया और कहा, ‘‘बुढिया अपना दूध नहीं पिला सकी और काफिर का दूध मेरी नसों में भरवा दिया, मैंने गुनाह करने वाले और करवाने वाले दोनों को ही मार दिया, अब दुनिया के काफिरों का खात्मा करने के लिए मेरे हाथ नहीं कांपेंगे।’’
इस घटना के वर्षो बाद वह लुटेरा और आतंकवादी बन गया और कई राजाओं को मारकर अपनी तानाशाही स्थापित की और इस्लाम की तरक्की में जी जान से जुटकर काफिरों का कत्लेआम करने लगा।
एक बार एक नगर में उसके सामने बहुत सारे हिन्दु बंदी पकड़ कर लाये गए। तानाशाह को उनके जीवन का फैसला करना था। उन बंदियों में तुर्किस्तान का मशहूर कवि अहमदी भी था।
तानाशाह ने दो गुलामों कि ओर इशारा करके अहमदी से पूछा – “मैंने सुना है कि कवि लोग आदमियों के बड़े पारखी होते हैं। क्या तुम मेरे इन दो गुलामों की ठीक-ठीक कीमत बता सकते हो?”
अहमदी बहुत निर्भीक और स्वाभिमानी कवि थे। उन्होंने गुलामों को एक नज़र देखकर निश्छल भाव से कहा – “इनमें से कोई भी गुलाम पांच सौ अशर्फियों से ज्यादा कीमत का नहीं है।”
“बहुत खूब” – तानाशाह ने कहा – “और मेरी कीमत क्या होनी चाहिए?”
अहमदी ने फ़ौरन उत्तर दिया -“पच्चीस अशर्फियाँ”।
यह सुनकर तानाशाह की आँखों में खून उतर आया। वह तिलमिलाकर बोला – “इन तुच्छ गुलामों की कीमत पांच सौ अशर्फी और मेरी कीमत सिर्फ पच्चीस अशर्फियाँ! इतने की तो मेरी टोपी है!”
अहमदी ने चट से कहा – “बस, वही तो सब कुछ है! इसीलिए मैंने तुम्हारी ठीक कीमत लगाई है”।
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जानते है ये तानाशाह कौन था.......???
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इस्लामिक आतंकवादी तैमूर लंगड़ा था वो।

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

इस्लामिक आतंकवादी तैमूर लंगड़े का विनाशक वीर हरबीर सिंह गुलिया

करीना कपूर खान द्वारा अपने बेटे का नाम इस्लामिक आतंकवादी *'तैमुर'* के नाम पर रखे जाने से कम से कम आज इस नाम के साथ भुला दिए गये हरियाणा के शूरवीर योद्धा श्रद्धेय *हरवीर सिंह गुलिया* तो देशवासियो के दिलो में जीवित हुए, जिन्होंने तैमूर लंगड़े की छाती में भाला ठोक कर उसके आतंक को समाप्त किया था।
आज देर से सही पर शीश झुकाकर कोटि कोटि नमन है उस परम योद्धा को जिसने भारतीय आन बान और शान का मस्तक ऊँचा किया।
उपप्रधान सेनापति हरबीर सिंह जी का गोत्र गुलिया था, जो उनके नाम के साथ जुड़ा हैं। यह हरयाणा के जिला रोहतक गांव बादली के रहने वाले थे। उनकी आयु 22 वर्ष की थी और उनका वजन 56 धड़ी (7 मन) था। यह निडर एवं शक्तिशाली वीर योद्धा था।......
उप-प्रधानसेनापति हरबीरसिंह गुलिया ने अपने पंचायती सेना के 25,000 वीर योद्धा सैनिकों के साथ तैमूर के घुड़सवारों के बड़े दल पर भयंकर धावा बोल दिया जहां पर तीरों* तथा भालों से घमासान युद्ध हुआ।
```इसी घुड़सवार सेना में तैमूर भी था। हरबीरसिंह गुलिया ने आगे बढ़कर शेर की तरह दहाड़ कर तैमूर की छाती में भाला मारा जिससे वह घोड़े से नीचे गिरने ही वाला था कि उसके एक सरदार खिज़र ने उसे सम्भालकर घोड़े से अलग कर लिया।``` (तैमूर इसी भाले के घाव से ही अपने देश समरकन्द में पहुंचकर मर गया)। वीर योद्धा हरबीरसिंह गुलिया पर शत्रु के 60 भाले तथा तलवारें एकदम टूट पड़ीं जिनकी मार से यह योद्धा अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ा।```
भारत के इतिहास के पन्नो से ।

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

गुरुवार, 25 मई 2017

चीनी उत्पादों का स्थायी रूप से बहिष्कार करें

हम सभी भारतीयों को चीनी उत्पादों का स्थायी रूप से बहिष्कार करना चाहिए। क्योकि चीन ने आतंकवाद के प्रश्न पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के विरूद्ध वोट दिया है और सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान को समर्थन दिया है।
मैं राष्ट्रीय हित में कुछ वर्ष पूर्व से ऐसा कर रहा हूँ। आप भी शामिल हो सकते हैं। आपका एक छोटा सा कदम आंदोलन बन जाएगा। आपकी सहभागिता चीन को सीख देगी।
भारत माता की जय।
- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल

भारत माता की जय

🚩जय श्री राम । भारत माता की जय🚩

आज एक धर्माज्ञा हम जारी कर रहे है कि भारत माता की जय न बोलने वालों की दुकानों से कोई लेन देन नहीं करना है, अब हमारी भी भावनाएं आहत होंगी, भारत माता के सपूत इनका आर्थिक बहिष्कार करे।
🚩🚩🚩🚩🚩
- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल 

दोगली न्याय व्यवस्था

ये देखों इंडिया की दोगली न्याय व्यवस्था, विषय एक ही, पर धर्म के आधार फैसले अलग अलग ?

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल

बुधवार, 24 मई 2017

हिन्दुओं के हजार साल पराधीनता का मूल कारण

🚩"ॐ"🚩
हिन्दुओं के हजार साल पराधीनता का मूल कारण मुसलमान या ईसाई नहीं, बल्कि वो नीच हिन्दू है जो मंदिर में अपने समाज के निर्बल वर्ग दलितों को रोकता है पर मुस्लिम दोस्तों को मंदिर ले जाता है, भोजन की पंगत में मुस्लिमो को साथ बिठाता है, पर दलित हिन्दू को बैठने नहीं देता । अगर आज भी इन नीच स्वार्थी जातिवादी हिन्दुओं का उचित इलाज नहीं किया गया तो हिन्दू धर्म को पतन से दुनिया की कोई ताकत नही रोक सकती । ऐसे नीच हिन्दू जो दलितों को मंदिर जाने से रोके मुस्लिमों के पहले इन्हें दण्डित किये जाने की आवशियकता है ।।
🚩ॐ सनातन हिन्दू धर्म में जातिवाद का कोई अस्तित्व नहीं है, सनातन धर्म में जातिवाद मानने वाले राक्षस है ॐ🚩
🚩जो बोले सो अभय सनातन धर्म की जय  
- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल

भारत स्वाभिमान दल संक्षिप्त परिचय

भारतवर्ष एक ऐसा देश है जो कभी सोने का शेर था  

हर व्यक्ति आनन्दित, हर परिवार संपन्न, सबके पास अपने काम और सब कामो में व्यस्त, सर्वोच्च स्तर का चरित्र, बौद्धिक स्तर पर भारत का कोई मुकाबला नहीं था, उच्च स्तरीय गुरुकुल शिक्षा पद्धति, आयुर्वेदिक और शल्य चिकित्सा, तकनीकि विज्ञान और खोज में सबसे आगे, सबसे पहले अंतरिक्ष विज्ञान का ज्ञाता, संस्कार और परम्परा में पूरे विश्व का गुरु और सिरमौर कहलाने वाला भारतवर्ष आज वासना, नशा, भ्रष्टाचार और व्याभिचार और आलस्य में डूबा हुआ है।

हर तरफ चोरी, दुश्मनी, हत्या, बलात्कार, धरना प्रदर्शन, मुफ्तखोरी, दलाली, घूसखोरी और अपराध अपने चरम पर है।

कोई संतुष्ट नहीं, सबके अंदर असुरक्षा की भावना घर कर चुकी है, कुछ भी निश्चित नहीं लगता।

जो समाज का नेतृत्व करते है, जिनके इशारे मात्र पर कुछ बदल सकता है, वो स्वाभिमान जागरण, विकास और राष्ट्रीय एकता के स्थान पर, विनाश और साम्प्रदायिक तुष्टिकरण कर विखण्डन की बात करते है, अपने राजनैतिक हित के लिए हमेशा धर्म के आधार पर भेदभाव करते है, जाति और सम्प्रदाय की बातो में उलझाकर, उकसाकर लड़वाया करते है, और वोट की राजनीति करते है, उनके लिए हम वोट बैंक के अलावा और कुछ नहीं।

जो विकास और जानकारी के स्रोत है, जो जन जन तक जानकारी पहुचाने के माध्यम है, वो अश्लीलता परोसकर विदेशी कम्पनियो का व्यापार बढ़ाकर, कमीशन के रूप में पैसा बटोर रहे है, भारत के नागरिकों को संविधानिक रूप से साम्प्रदायिक आधार पर बांटने वाले कानून लागू कर दिये गये है।

जिनके हाथ में देश का भविष्य है, जो पीढ़ियों का निर्माण करते है, जो अपने द्वारा बच्चों को चरित्र, व्यवहार, सामाजिक और भविष्य निर्माण की कला सिखाते है, उनको कानूनों में बांधकर अपंग बना दिया, और थोप दी विदेशी शिक्षा व्यवस्था।

आज सब व्यवस्थाओं में घुन लग गया है, कुछ स्पष्ट है और ही सापेक्ष, अपनी मूल प्रकृति को भूलकर दूसरो की व्यवस्था और गंदे संस्कारो से प्रभावित होकर हम विनाश की अंधी दौड़ में शामिल हो गए है जिसका अंजाम शायद एक दिन सीरिया जैसा हो सकता है।
क्या आप चाहते हो कि आप के बच्चे जिन्हें आप अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हो, ऐसे माहौल में जिए, ऐसी व्यवस्थाये विनाशकारी है इनको बदलना होगा।

ऐसे में देश के कुछ युवाओ और बुद्धिजीवी लोगो ने मिलकर, अपने देश के स्वर्णिम इतिहास का अध्ययन कर क्रांतिकारी, योगियो और संतो के जीवन से प्रेरणा लेकर "भारत स्वाभिमान दल" संगठन की स्थापना की है, और उन सिद्धांतो पर कार्य करने का निर्णय लिया जिन पर चलकर यह देश खुशहाल, संपन्न, शक्तिशाली, संस्कारवान और विश्वगुरु था। आइये मिलकर संस्कारित, खुशहाल, समृद्ध, दिव्य और तेजस्वी भारत का निर्माण करे।

सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए संगठित होना अति आवश्यक है।

भारत स्वाभिमान दल देश के हर उम्र के विचारशील, प्रगतिशील और राष्ट्रभक्तों का इस महान कार्य में सहयोग के लिए आवाहन करता है।

सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिए भारत स्वाभिमान दल की ग्यारह सूत्री कार्य योजना:-


1. वर्तमान में चल रही समस्त गलत नीतियों भ्रष्ट व्यवस्थाओं का राष्ट्र हित में पूर्ण परिवर्तन कराना। भ्रष्टाचार, बलात्कार, दहेज हत्या, गौहत्या, आतंकवाद मिलावट करने वालों के विरूद्ध मृत्युदण्ड का कानून बनवाकर सम्पूर्ण भारतीयों को सुरक्षा प्रदान करवाना। शिक्षा, स्वास्थ्य, कानून, अर्थ कृषि व्यवस्था का पूर्ण भारतीयकरण स्वदेशीकरण करना।

2. साम्प्रदायिक आधार पर भेदभाव करने वाले कानूनों को निरस्त कर समान नागरिक संहिता लागू करना।

वर्तमान भारतीय संविधान जाति धर्म के आधार पर भारतीय नागरिकों में भेदभाव करता हैं, यह संविधान धर्म के आधार पर किसी नागरिक को सामान्य, तो किसी नागरिक को विशेषाधिकार देता हैं। इस संविधानिक साम्प्रदायिक भेदभाव के चलते देश में जातीय साम्प्रदायिक तनाव बढ़ रहा हैं, जो राष्ट्रीय एकता अखण्डता के लिए घातक हैं, और कालांतर में गृहयुद्ध का कारण भी बन सकता हैं। राष्ट्र हित में साम्प्रदायिक आधार पर भारतीय नागरिकों में भेदभाव करने वाले कानूनों को निरस्त कर समान नागरिक संहिता लागू की जाए। देश में समानता का अधिकार लागू किया जाना चाहिए।

3. जातिवाद को असंवैधानिक घोषित करना, सरकारी महत्व के अभिलेख विद्यार्थी पंजीकरण, मूल निवास, जॉब पंजीकरण आदि परिपत्रों में जाति लिखने को प्रतिबंधित करना।

4. नौकरी हेतु किसी भी प्रकार के आरक्षण को अवैध घोषित कर उस पर प्रतिबंध लगाना, केवल शिक्षा हेतु आर्थिक आधार पर गरीब विद्यार्थियों को सहायता दी जाए, नौकरी उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर मिले।

5. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना, काले धन को वापस मंगाना, भ्रष्टाचारियों की संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना भ्रष्टाचारियों को कठोर दंड का प्रावधान करना।

6. केन्द्रीय गौवंश मंत्रालय बनाकर स्वदेशी गौवंश को प्रोत्साहन की नीति बनाना।  केन्द्रीय योजना बनाकर जिला स्तर पर एक एक लाख गौवंश की क्षमता वाली गौशालाएँ बनवाना, उनमें बेसहारा गाय, बैल सांडों को रखकर गौवंश आधारित उद्योगों की शुरूआत कराना, गैस, बिजली, खाद, औषधि आदि गौवंश से उत्पन्न कर विदेशी मुद्रा बचाना, तथा गाँवों में गौवंश आधारित संयंत्र स्थापित करने के लिए गौवंश पालक किसानों को सबसिडी देने का प्रावधान करना, ग्रामीण भारतीयों को आत्मनिर्भर बनाना

7. सभी धर्मों के भारतीय नागरिकों के लिए अधिकतम तीन संतान उत्पन्न करने का कठोर जनसंख्या कानून बनाना, इस कानून की अवमानना करने वाले को सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित कराना।

8. विद्यालयों में चरित्र निर्माण, व्यवसायिक शिक्षा सैन्य शिक्षा अनिवार्य करना। तथ्यों के आलोक में भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन कराना तथा ताजमहल, लालकिला आदि प्राचीन भवनों के वास्तविक निर्माताओं को श्रेय देकर भारत का सुप्त स्वाभिमान जगाना। काल गणना के लिए युगाब्ध को अपनाकर राष्ट्रीय पंचांग के रूप में लागू करना। केन्द्रिय परीक्षाओं में अंग्रेजी प्रश्नपत्र की अनिवार्यता समाप्त करना तथा संस्कृत, हिन्दी क्षेत्रिय भाषाओं को वैकल्पिक आधार प्रदान करना।

9. स्वदेशी उत्पादनों को प्रोत्साहित करना। आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति घोषित करना।

10. उन्नत कृषि एवं पशुपालन को प्रोत्साहित करना तथा राष्ट्रीय किसान आयोग का पुनर्गठन करना।

11. बेरोजगारी, गरीबी, भूख, अभाव अशिक्षा से मुक्त स्वस्थ, समृद्ध, संस्कारवान शक्तिशाली भारत का पुनर्निर्माण करना और भारत को विश्व की महाशक्ति तथा विश्वगुरू के रूप में पुन: प्रतिष्ठित करना।


भारत स्वाभिमान दल - समर्पण निधि योजना

साथियों, जैसा कि आप सभी लोग जानते है कि देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा संवर्धन के लिए कार्यरत क्रांतिकारी संगठन भारत स्वाभिमान दल एक राजनीतिक विचारों का गैर राजनीतिक संगठन हैं।

साथियों साम्प्रदायिक तुष्टिकरण कर्ताओं धर्मनिरपेक्ष शक्तियों से धर्म और संस्कृति को सुरक्षित करने के लिए ही नहीं, देश की समूचीव्यवस्था को सही तरीके से चलाने के लिए भी अच्छे लोगों का राजनीति में आना जरूरी है। ऐसे ही लोग भ्रष्टाचारी आसुरी शक्तियों के प्रभाव को दूर कर पाते हैं जो आम जन की अभिलाषाओं को पूरा कर पाने की दिशा में प्रयत्नशील रहते हैं।

हमारे जनतंत्र में चुने हुए लोगों का महत्व बहुत है। सरकार चलाने व्यवस्था बनाने का काम इन्हीं के हाथ में होता है। लेकिन देखने में यह आता है कि किसी भी तरह चुनाव जीतने वाला इंसान आम जन की सेवा के भाव से नहीं आता। उसके निजी स्वार्थ होते हैं और वह समाज के हर तबके के बारे में प्राय : मानवीय दृष्टि से नहीं सोचना चाहता। यहीं से साम्प्रदायिक तुष्टिकरण का कारोबार शुरू हो जाता है। जो योजनाएं आम जनता के कल्याण के लिए बनाई जानी चाहिए, वे साम्प्रदायिक आधार पर बनाई जाती है, सभी भारतीयों को उनका लाभ मिल ही नहीं पाता।

इस स्थिति को समाप्त करने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि राजनीति में समाज सेवा का भाव रखने वाले हिन्दुत्वनिष्ठ लोग अधिक से अधिक आएं। शुरुआत भले ही कम लोग करें , लेकिन उनके राजनीति में प्रवेश से और लोगों का हौसला भी बढ़ेगा। उनके सही जगह पहुंचते ही साधारण नागरिक को भी सरकार पर विश्वास होने लगेगा।

मित्रों नेताओ को कोसने की प्राचीन परंपरा छोडकर अब नई पीढ़ी को राजनीति के शुद्धिकरण का बीड़ा उठाना चाहिए इसके लिए अच्छे लोगो को राजनीति में आने की जरूरत है पानी की गहराई किनारे पर बैठ कर नहीं आँकी जा सकती है अब तो राजनीति में शुद्ध आचार-विचार वाले व्यक्तियों को आना ही होगा

भारत स्वाभिमान दल राष्ट्र को एक सशक्त राजनीतिक विकल्प देने जा रहा हैं, जिसके लिए देश भर से हमें समर्पण निधि योजना के तहत हितचिंतक चाहिए, जो भारत स्वाभिमान दल को न्यूनतम 1100 से 11000 रुपये तक का आर्थिक अनुदान दे सके। समर्पण निधि के सहयोग दाताओं में से अथवा उनके सुझाव अनुसार ही प्रत्याशियों का चयन किया जायेगा।

सक्रीय राजनीति में उतरने के बाद "भारत स्वाभिमान दल जो घोषणा करेगा, वहीं कार्य करेगा", इसके लिए दल का चुनावी घोषणा पत्र भी नोटरी द्वारा प्रमाणित कराकर जारी किया जाएगा, ताकि अपने वचनों को पूरा किये जाने की स्थिति में कोई भी भारतीय नागरिक भारत स्वाभिमान दल पर कोर्ट केस कर सकें। इसलिए अनावश्यक सोच विचार छोड़ कर छब्बीस सौ वर्षों की गलतियों को सुधारने के लिए भारत स्वाभिमान दल के हित चिंतक बनें, और व्यवस्था बदलें।

सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन, राजनैतिक शुचिता था भारत के पुर्नोत्थान के लिए अधिक से अधिक संख्या में तन- मन- धन के साथ संगठन से जुड़ें। 
 भारत स्वाभिमान दल आपका हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन करता हैं।

पैसा कमाया सिंध में सिंधीयों ने, 1947 में जब धर्म सुरक्षित रहा तो सब छोड़कर भागना पड़ा सिंध से... 
पैसा कमाया कश्मीर में पंडितों ने, बाद में केसर के खेत छोड़ कर भागना पड़ा कश्मीर से... 
जूट व्यापारियों ने खूब पैसा बनाया बंगाल में, बाद में मालूम पड़ा की बंगाल तो उधर रह गया ये तो पूर्वी पाकिस्तान (1971 से बांग्लादेश) है तो भागना पड़ा बांग्लादेश से... 
पैसा कमाओ अच्छी बात है लेकिन धर्म सुरक्षा में भी लगाओ...  
वरना सारा कमाया छोड़ भागने को तैयार रहो... 

धन से धर्म की रक्षा होती हैं। धन के बिना कोई भी संगठन धर्म की रक्षा नहीं कर सकता। 
अत: धर्म रक्षा के लिए भी तन- मन के साथ धन का सहयोग भी करना चाहिए।


नोट :- दान सहयोग कैसे करे



सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन, राजनैतिक शुचिता राष्ट्र- धर्म रक्षा के लिए भारत स्वाभिमान दल की समर्पण निधि योजना में सहयोगी बनने के इच्छुक दानदाता बैंक ऑफ बड़ौदा की स्थानीय सी0बी0एस0 शाखा में पहुंचकर भारत स्वाभिमान दल
खाता संख्या A/C no :- 08840100020849 
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के नाम अपना धन जमा कर उसकी जमा पर्ची अपना नाम, आयु, पिता का नाम, शैक्षणिक योग्यता, पत्र व्यवहार का पता (पिन कोड सहित), मोबाइल नम्बर हमें 08535004500 पर वाट्सएप्प कर दें। यदि आपका खाता बैंक ऑफ बड़ौदा में नहीं हैं, तो आप श्री धर्म सिंह जी, राष्ट्रीय प्रभारी से 08535004500 पर सम्पर्क करें।