2. गाँधी का
झूठ -‘सादा
जीवन उच्च
विचार’
गाँधी गरीबी
में रहने
का पाखंड
करते थे।
वे गरीबों
की तरह रेल
में तीसरी
श्रेणी में
यात्रा करते
थे। लेकिन
उनके लिए
उनके चेले
पूरा डिब्बे
पर कब्जा
कर लेते
थे। इस
गुंडागर्दी का
गाँधी विरोध
नहीं करते
थे और
अपनी सुविधा
के लिए
यह मान
लेते थे
कि उनके
लिए जनता
ने खुद
डिब्बा खाली
छोड़ दिया
है। वे
बकरी का
दूध पीते
थे,
इसलिए हर
जगह बकरी
उनके साथ
ही जाती
थी। वे
इस बात
की चिंता
नहीं करते
थे कि
इस दिखावे
पर कितना
खर्च होगा।
सच्चाई - सरोजिनी नायडू
ने एक
बार स्पष्ट
स्वीकार किया
था कि
गाँधी को
गरीब बनाये
रखने में
हमें बहुत
धन खर्च
करना पड़ता
है। क्या
अधिक धन
खर्च कराते
हुए भी
गरीबी में
रहने का
दिखावा करना
पाखंड नहीं
है?
3. गाँधी का
झूठ
- दूध गाय या
भेंस के
थनों को
खींचकर निकाला
जाता है,
इसलिए पशुओं
के प्राप्त
होने के
कारण माँसाहार
की श्रेणी
में आता
है। गाँधी
अंडे को
शाकाहारी मानते
थे,
क्योंकि अंडे
मुर्गी स्वयं
देती है।
खैर,
दूध के
बिना काम
न चलने
पर उन्होंने
गाय या
भेंस की
जगह बकरी
का दूध
पीना शुरू
कर दिया।
क्या बकरी
का दूध
निकालने के
लिए उसके
थनों को
नहीं खींचा
जाता?
क्या बकरी
अपना दूध
मूत्र की
तरह स्वयं
निकालती है?
क्या गाँधी
की परिभाषा
के अनुसार
बकरी का
दूध माँसाहार
नहीं है?
- विश्वजीत सिंह अभिनव अनंत
राष्ट्रीय अध्यक्ष
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