मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

मुझे गांधी क्यों पसंद नहीं हैं ? प्रस्तावना


 

"यदि हमारी सभ्यता की सुरक्षा की जानी है, उसे सुरक्षित रखा जाना है, तो हमें महान पुरूषों के प्रति अन्धश्रद्धा और अन्धभक्ति को समाप्त कर देना चाहिए। महान व्यक्ति महान त्रुटियाँ भी किये करते है।"

 

कार्ल पौपर की इन पंक्तियों का अर्थ हुआ कि कोई भी नहीं- चाहे वह महात्मा हो, पैगम्बर हो या अन्य कुछ भी हो- पुनर्विचार और और आलोचना की सीमाओं से परे नहीं रखा जा सकता। यह पंक्तियाँ गांधी जी पर बिल्कुल सार्थक बैठती है। संविधान कहता है कि चाहे महात्मा गांधी हो या कोई अन्य नागरिक सभी समान है। अगर मैं स्वदेशी के लिए उनकी प्रशंसा कर सकता हूँ, तो मुझे यह अधिकार होना चाहिए कि कहाँ पर वह पथभ्रष्ट हो गये।

मोहनदास करमचन्द गांधी की उनके जीवन काल में वीर सावरकर, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, विट्ठल भाई पटेल, लाला लाजपत राय, भगत सिंह, सुखदेव, मन्मथनाथ गुप्त, गुरूदत्त तथा अन्य क्रान्तिकारियों ने कठोर शब्दों में आलोचना की थी। और तो और ब्रिटिशों के विश्वासपात्र डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने भी गांधी का विरोध किया। परन्तु गांधी वध के बाद उन्हें महात्माओं की पंक्ति में शामिल कर दिया गया।
 
जो लोग कभी देश के स्वतन्त्रता समर में गांधी की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाया करते थे, वे उस संबंध में अब मौन हैं, क्योंकि चुनाव और वोट बैंक ने उनकी आवाज बंद कर दी हैं। हाँ, वीर सावरकर की विचारधारा को अपनाते हुए जीवन पथ पर अग्रसर होने वाले लोग गांधी के सिद्धांतों, गांधीवाद गांधी दर्शन की कड़े शब्दों में आलोचना करते हैं। इसी कारण वे गांधीवादियों के क्रोध का शिकार हो रहे हैं और परिणामस्वरूप चुनावों में हारों सामाजिक तिरस्कार को निरन्तर सहन कर रहे हैं।

सावरकरवादी और कुछ थोड़े से जागरूक नेताओं को छोड़कर भारत के बहुसंख्यक राजनैतिक दल, जो यथार्थ में गांधी के सिद्धांतों को पूर्णत: आत्मसात नहीं कर सके तो भी वे गांधीवाद की आड़ में अपना राजनैतिक हित खोज रहे है। गांधी की मोहर लगाकर अपनी राजनैतिक नैय्या पार लगाने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। वर्तमान भारतीय जनता पार्टी (पुराना जन संघ) के द्वारा गांधी के सिंबल को अपनाना और उसके द्वारा गांधियाई समाजवाद का दम भरना यह प्रमाणित करता है कि गांधी किसी के भी अनुरूप हो सकते है, ठीक बैठ सकते है, उनका किसी के साथ भी साम्राज्य स्थापित किया जा सकता हैं।

मोहनदास गांधी के यथार्थ रूप को अभिव्यक्त करने के लिए इस पुस्तक का लेखन किया गया है। इसके लेखन में बहुत सारी संदर्भित पुस्तकों वेबलेखों का उपयोग किया गया हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य किसी व्यक्ति या समुह की भावनाओं को आहत करना नहीं है, बल्कि गांधी जी के यथार्थ से विश्वमानवता को परिचित कराना हैं।  यदि समय मिला और संसाधन उपलब्ध हुए तो भविष्य में गांधी जी पर एक फिल्म बनाने का प्रयास भी किया जायेगा।   

  - विश्वजीत सिंह अभिनव अनंत
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत स्वाभिमान दल
        

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