21.1928 ई. में जब कांग्रेस की ओर से नेहरू रपट तैयार की गई। इसमें भारत के भावी संविधान में गांधीजी के समर्थन से 'डोमिनियन स्टे्टस' की मांग की गई। सुभाष ने पूरी स्वतंत्रता के प्रस्ताव का दबाव बनाया पर गांधीजी का उन्हें समर्थन नहीं मिला।
1928 के कोलकाता अधिवेशन में भी सुभाष की एकमात्र आवाज भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की मांग रही थी। 1929 का कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन कांग्रेस के इतिहास में एक राजनीतिक छलावा, एक भ्रमजाल तथा एक नाटक था। पं. नेहरू जी के नेतृत्व में पूर्ण स्वराज्य अर्थात पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा मंच से की गई थी।
सुभाष बोस ने पूर्ण स्वराज्य का अर्थ अंग्रेजों से पूर्ण संबंध विच्छेद करके स्वतंत्रता से जोड़ने को कहा। परंतु गांधीजी ने इसे स्वीकार न किया। परंतु 9 जनवरी 1930 के हरिजन में पूर्ण स्वराज्य का अर्थ 'डोमिनियन स्टे्टस' ही स्वीकार किया। इतिहास का यह आश्चर्यजनक तथ्य है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का कभी लक्ष्य ही नहीं रखा (देखें सतीशचन्द्र मित्तल, कांग्रेस : अंग्रेज भक्ति से राजसत्ता तक, नई दिल्ली,
2011)
22.वीर सावरकर पहले ऐसे नेता थे , जिन्होंने स्वदेशी की चेतना जगाने के लिए पुणे में (07अक्टूबर 1905 में) विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर लोगों को विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने को कहा था । तिलक एवं परांजये जी ने भी इसका समर्थन किया।
मोहनदास करमचंद गांधी ने उनकी आलोचना
यह कहते हुए की थी कि यह काम घृणा एवं हिंसा पर आधारित
हैं।यह एक अलग बात हैं कि इसके 17 वर्ष बाद 21 नवम्बर 1921 में अपने भारतीय व्यापारी मित्रों के आर्थिक हितों की रक्षा व मुस्लिम तुष्टिकरण के आंदोलन खिलाफत या असहयोग आन्दोलन के समय स्वयं गांधी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।
- विश्वजीत सिंह अभिनव अनंत
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भारत स्वाभिमान दल
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