मंगलवार, 4 जुलाई 2017

दलितों के भगवान विठोबा

दलितों के भगवान विठोबा।।
हम सब दलित है और हम सब को उठानेवाले हमारे माता पिता हमारे विठोबा है।
पंढरी ची वारी
आहे माझ्या घरी ।।
आषाढ़ी एकादशी की जै जय राम कृष्ण हरिम।।
सनातन धर्म में शैव और वैष्णव 2 आध्यात्मिक परंपरायें चलती है। शैव शिव जी को मानते है और वैष्णव विष्णु को। दोन्हों परंपरायें महान; सभ्य; धर्मनिष्ठ और मानवीय है।
दोन्हों का मूल वेद है। दोन्हों परंपराओं में जातीय कट्टरपन; धार्मिक अंधविश्वास ; भाषीय अथवा प्रांतीय भेदभाव नही है। फिर भी दोन्हों साम्प्रदायि लोगों में स्व वर्चस्व की नोकझोक होती रहती थी-शिव बड़ा की विष्णु। वो भी बहुत प्रेम से।।
इसि में से एक क्रांन्तिकारी संप्रदाय ने जन्म लिया-वारकरी सम्प्रदाय।
वैदिक व्यवस्था के विद्वेष पूर्ण संक्रमण काल में इस संप्रदाय की करीब 700 वर्ष पहले नीव पड़ी। धार्मिक भेदभाव पूर्ण व्यवहार के कारण अधिकतर लोग अपनी वैदिक पहचान और धार्मिकता खोते जा रहे थे। लोग धार्मिक; सामाजिक एवँ राजनैतिक स्तरपर पतित हो चुके थे।
लोग अपनी संस्कृत भाषा; भूषा; रहनसहन खोते जा रहे थे। हमारी वैदिक व्यवस्था और पहचान भी नष्ट होने की ओर थी।
ऐसे सांस्कृतिक पतन के अंधकार युग में लोगों को चाहिए था प्रेम; सर्व बंधुत्व; दया; क्षमा के साथ सह अस्तिव की धार्मिक स्वतंत्रता। जिसमें सब को मिले सामाजिक; धार्मिक समान अवसर।
इस कमी को पूरा करने के लिए ही जन्म लिया वारकरी संप्रदाय ने। यह मूल रूप से वैदिक है और सर्वजन हिताय सर्व जन सुखाय का काम करता है। यह समत्व; दया; विनम्रता; समर्पण और धार्मिक समान अवसर पर आधारित है।
विठोबा दलितों के ही भगवान है। हम सब दलित है और वे ही हम सब को उठानेवाले हमारे मातापिता है।।
इस सम्प्रदाय का सिद्धांत है जड़- चेतन सर्व जगत में एक भगवदीय सत्ता का वास है- आप उस को विठ्ठल; हरी; विष्णु; शिव आदि नामों से पुकार सकते है। हरी हरा भेद नाही। नका करू वाद।।विठ्ठल जली स्थली भरला। सब के साथ समानरूप से अच्छा व्यवहार कीजिये।
संत तुकाराम जी ने तो स्पष्ट घोषणा कर दी थी- वेदों का अर्थ तो हमे ही पता है; बाकि लोग तो केवल उसका बोझा ढोते है- वेदा चा तो अर्थ हमासाची ठावा। इतरानी वहवा भार माथा।
इसके मूल पुरुष थे संत नामदेव महाराज दर्जी; संत ज्ञानेश्वर महाराज; संत चोखोबा महार; संत तुकाराम महाराज कुनबी; हैबतराव बाबा आदि। इस संप्रदाय में सभी जातियों के सभी वर्णीय संत हुए है। इन में न कोई छोटा है न बड़ा होता है।
सभी वर्णों के लोग एक जगह बैठकर भोजन करते है; भजन करते है; कीर्तन करते है- नामदेव तुकाराम तुकाराम तुकाराम।
वे नियमित पंढरी की वारी करते है-आळंदी से पंढरपुर। इसीलिए इन्हें वारकरी कहा जाता है। वारी माने नियमित रूप से विठ्ठल भगवान् के दर्शन के लिए पंढरपुर की वाहन से अथवा पैदल यात्रा करना। यह पदयात्रा 21 दिन चलती है। इसमें पैदल चलनेवाले करीब 2 लाख वैष्णव होते है। यह यात्रा आषाढ़ी एकादशी को पंढरपुर पंहुच जाती है।
माथे पर चंदन का तिलक; गले में तुलसी की माला; हाथ में वीणा और करताल; कंदे पर भगवी पताका; हृदय में पवित्र प्रेम और मुख से हरिनाम गजर यही तो वारकरी संप्रदाय का स्वरुप है।
विठ्ठल विठ्ठल विठ्ठला। मेरे विठ्ठल पांडुरंगा।
महामंडलेश्वर आचार्य स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी से साभार

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