शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा की शिकायत भाग- 10


वेलिंगकर 'भारतीय भाषा सुरक्षा मंच' के अगुआ हैं, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुसांगिक संगठन हैं। इसके अभियान के अनुरूप गोवा भाजपा ने सत्ता में आने पर प्राथमिक शिक्षा में अंग्रेजी माध्यम को हतोत्साहित करने की घोषणा की थी। इसी का जरूरी अंग था उन स्कूलों को सरकारी अनुदान बंद करना, जहां प्राथमिक शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से दी जाती है। किंतु भाजपा सत्ताधारियों ने वादे का उलटा किया। बल्कि वेलिंगकर को वचन देकर भी चुपचाप पलट गए। दूसरा मुद्दा ऐसी अनेक घटनाओं से बना है और यह कि सत्ता से बाहर रहने पर भाजपा जिन प्रश्नों को उछालती है, उन्हें सत्ता में आकर न केवल छोड़ देती है, बल्कि कई बार ठीक विपरीत करती है। अंग्रेजी भाषा का शासकीय वर्चस्व खत्म करने के अलावा भी कई प्रश्न हैं। उदाहरण के रूप में अल्पसंख्यकों के समकक्ष हिंदुओं को समान शैक्षिक-सांस्कृतिक अधिकार देने, संविधान की धारा 25 से 31 तक को सबके लिए समान रूप से लागू करने, धारा 370 को खत्म करने, जम्मू-लद्दाख को स्वतंत्र राज्य बनाने, अवैध धर्मांतरण बंद कराने, बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों को वापस भेजने, प्रमुख हिंदू मंदिरों पर इस्लामी अतिक्रमण या दावेदारी खत्म करने आदि मुद्दों को समय-समय पर भाजपा ने जोर-शोर से उठाया। कई बार चुनावी मुद्दा भी बनाया। किंतु सत्ता में आने के बाद वह भूलकर दूसरे कामों में लग गई।
बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजने का मुद्दा एक बार महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों में प्रमुखता से उठाया गया था। किंतु जीतने के बाद भाजपा ने इस पर काम नहीं किया। वही स्थिति हज सब्सिडी खत्म करने पर हुई। उसे वाजपेयी सरकार ने उलटे बढ़ा दिया। इसी तरह चर्च के संगठित धर्मांतरण कार्यक्रम से हिंदू समाज को सीधी चोट पहुंचते रहने के बावजूद वाजपेयी ने पोप का लालकालीन बिछाकर स्वागत किया। उसी अवसर पर पोप ने पूरे एशिया को धर्मांतरित करने का खुला आव्हान किया। अभी-अभी भाजपा सत्ताधारियों द्वारा फिर उसी तरह वेटिकन के सामने बिछने का विचित्र कदम उठाया गया है। बार-बार दिखते इस दोहरेपन का मतलब क्या है? यदि भाजपा बुनियादी रूप से कांग्रेसी नीतियों को ही जारी रखती है, तब कांग्रेस-मुक्त भारत का लक्ष्य रखना दोहरा पाखंड है। एक तो, कांग्रेस कोई देश की शत्रु नहीं, जबकि वास्तविक शत्रुओं के सामने सिर झुकाने सत्ताधारी प्रतिनिधिमंडल वेटिकन भेजे जा रहे हैं। दूसरा पाखंड कि कांग्रेस की हानिकारक शैक्षिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक नीतियों को जारी रखकर कैसी कांग्रेस-मुक्ति? यह तो कांग्रेस बिना कांग्रेसी शासन हुआ। एक अर्थ में वेलिंगकर ने इसी के विरोध में भाजपा को हराने की ठानी है।
नि:संदेह यह प्रश्न किनारे नहीं किया जा सकता कि सत्ता से बाहर और सत्ता में भाजपा की बोली क्यों बदल जाती है? यह कोई बाहरी दिखावा भी नहीं। दशकों का अनुभव बताता है कि भाजपा केवल वोट के लिए राष्ट्रवादी चिंताएं उठाती है, जिसे पूरा करने के प्रति वह गंभीर नहीं। दूसरा मुद्दा भाजपा और आरएसएस के संबंध का है। आरएसएस घोषित रूप से सांस्कृतिक संगठन है, लेकिन इसकी सर्वोपरि चिंता राजनीतिक रही है। विधानसभा या संसद के चुनावों में भाजपा के लिए काम करना, अपने कार्यकर्ताओं को भाजपा में भेजना, देश-विदेश के राजनीतिक मुद्दों पर बयान देना आदि कार्य शुद्ध राजनीतिक हैं जो सांस्कृतिक संगठन की गति-मति से मेल नहीं खाते।
संघ, भाजपा के इस सच से आपको अवगत कराने के बाद हम आपसे कहना चाहते है कि हे सनातनी युवाओं, राक्षसों से अपना धर्म, धन- संपदा और अपनी बहन बेटियां बचाना चाहते हो तो अपनी असीम शक्ति पहचान कर अपने अपने क्षेत्र को सम्भालो।
बाहुबल व संख्याबल दोनों को बढ़ाओ, दंगे थोपे जाएं या चुनाव, सामने वालों को भीषण टक्कर देने का सामर्थ्य पैदा करो।
हम भगवान श्री राम व श्री कृष्ण के वंशज हैं, कोई भी कार्य हमारे लिए असम्भव नहीं।
केवल फेसबुक, व्हाट्सएप्प जैसी सोशल मीडिया पर लिखने से नहीं होगा, अपने मोहल्ले अपने गाँव अपने नगर के हिन्दू मित्रों के छोटे छोटे समूह बनाइये।
उनको शास्त्र और शस्त्र से सम्पन्न बनाइये, सशक्त बनाइये।
आपस में मिलना जुलना, धर्म शिक्षा देकर धर्म साधना शुरू कीजिये, हिन्दू समाज का दैविक बल जगाईये।
आने वाला समय धर्मनिरपेक्षों व राक्षसों से दो दो हाथ करने का है।
स्मरण रखियें
ये भाजपा ये आर एस एस ये हिन्दू संगठन कोई भी आपके साथ खड़ा नहीं दिखेगा।
पर वे युवक जिनकी नसों में सच्चे हिंदुओं का खून है, वही आपका साथ देंगे।
व्यथित हृदय से संघ का एक स्वयंसेवक
वन्दे मातरम्
जय श्री राम
समाप्त

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