मंगलवार, 4 जुलाई 2017

श्लोक ,मन्त्र रहस्य

 हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथो में संस्कृत में श्लोको,मंत्रो के मॉध्यम से विषय क्यों प्रस्तुत किये??

हमारा मस्तिष्क एक नियमित वस्तु, प्रसंग, ध्वनि को आसानी से ग्रहण कर लेता है, इनसे तालमेल बिठा लेता है , यही कारण है कि ट्रेन में एक संगीतमय खटपट की तेज किंतु  लयबद्ध आवाज में भी हम सो जाते है।

अनियमित चीज,अनियमित रूप से बिखरा सामान, अनियमित रूप के कोनो से बना हुआ घर, अनियमित रूप के डिजाइन के कपड़े देखने में विचित्र लगते है और ऐसे चीजो को देखकर दिमाग झुंझला जाता है,बेचैन होता है, बीपी बढ़ता है।


एक बालक में 5 से 9 वर्ष तक कोई तथ्य सीखने, ग्रहण करने, याद रखने, चेहरे स्थान याद रख पाने की बहुत व्यापक क्षमता होती है।

विशिष्ट तथ्य को श्लोक ,मन्त्र आदि के रूप में ऋषि रचित ग्रंथो में लिखा गया।
और  उसके विस्तार को समझने के लिये संस्क्रत के लेख के रूप में लिखा जाता है।

इसलिये
गुरुकुलों में इसी उम्र में विभिन्न विषयों से सम्बंधित तथ्य श्लोको, मंत्रो के रूप में  बालकौ को रटा दिए जाते थे जोकि फिर जीवन भर उनके दिमाग में स्थाई हो जाते थे।

ये मन्त्र, श्लोक एक विशिष्ट शैली में गाये जाते है,या बोलकर कहे जाते है, तो एक विशिष्ट आवृति उत्पन्न होती है, जोकि दिमाग को सक्रीय करती है अर्थात मस्तिष्क के nurons तंत्र को खोलती है अर्थात हमारी स्मरण शक्ति अधिक तीव्र होते जाती है।

मंत्रो के द्वारा अधिक परिष्कृत आवृति, ध्वनि का उत्पादन होता है
जोकि
वातावरण में वायु के मॉध्यम से  अन्य तरंगों में परिवर्तित modulated होकर, आह्वान किये गए पदार्थ, व्यक्ति, पंचतत्व तक पहुचकर, कार्य सिद्ध करते है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें