सोमवार, 22 मई 2017

ज्ञानवर्धक प्रश्नोत्तरी



प्रश्न - भाग्य क्या है?
उत्तर - हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।
 
प्रश्न - सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
उत्तर - सत्य, सदाचार, प्रेम, शौर्य, क्षमा और संघबद्ध रहना सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, पॉपाचार, कायरता, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।
 
प्रश्न - चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उत्तर - इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।
 
प्रश्न - सच्चा प्रेम क्या है?
उत्तर - स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।
 
प्रश्न- तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
उत्तर - जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।
 
प्रश्न - आसक्ति क्या है?
उत्तर - प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।
 
प्रश्न - बुद्धिमान कौन है?
उत्तर - जिसके पास विवेक है।
 
प्रश्न - मैं कौन हूँ ?
उत्तर - तुम यह शरीर हो, इन्द्रियां, मन, बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।
 
प्रश्न - जीवन का उद्देश्य क्या है?
उत्तर - जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।
 
प्रश्न - जन्म का कारण क्या है?
उत्तर - अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।
 
प्रश्न - जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
उत्तर - जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।
 
प्रश्न - वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
उत्तर - जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।

प्रश्न - जाति क्या है?
उत्तर - जो ईश्वरकृत मनुष्य, गाय, अश्व, हाथी, घोड़ा आदि जीव- जन्तु और वृक्षादि समूह है, वह सब जाति कही जाती है |
 
प्रश्न - तो क्या मनुष्यों में जाति नहीं होती?
उत्तर - हाँ, मनुष्यों में जाति नहीं होती क्योंकि मनुष्य स्वयं एक जाति है, इसमें ढाई भेद अवश्य होते है- पुरूष, स्त्री और उभयलिंगी(नपुसंक या हिजड़ा) | जो मनुष्य में इनसे अधिक भेद या जाति मानते है वे अज्ञानी है |
 
प्रश्न - संसार में दुःख क्यों है?
उत्तर - लालच, स्वार्थ, भय, दुष्ट- अधर्मियों को कठोर दण्ड का दिया जाना संसार के दुःख का कारण हैं।
 
प्रश्न - ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
उत्तर - ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।
 
प्रश्न - चोर कौन है?
उत्तर - इन्द्रियों के आकर्षण, जो मन को हर लेते हैं
 
प्रश्न - जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
उत्तर - जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।
 
प्रश्न - कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
उत्तर - यौवन, धन और जीवन।

प्रश्न - नरक क्या है?
उत्तर - इन्द्रियों की दासता नरक है।
 
प्रश्न - मुक्ति क्या है?
उत्तर - अनासक्ति ही मुक्ति है।
 
प्रश्न - दुर्भाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - अकर्मण्यता, मद और अहंकार।
 
प्रश्न - सौभाग्य का कारण क्या है?
उत्तर - कर्मण्यता, सत्संग, विवेक और धर्म के प्रति समर्पणभाव।

प्रश्न - संसार को कौन जीतता है?
उत्तर- जिसमें सत्य, कर्मनिष्ठा और श्रद्धा है।
 
प्रश्न - भय से मुक्ति कैसे संभव है?
उत्तर - विवेक से।

प्रश्न- मुक्त कौन है?
उत्तर - जो अज्ञान से परे है।

प्रश्न - अज्ञान क्या है?
उत्तर - आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।
 
प्रश्न- मनुष्य का साथ कौन देता है?
उत्तर - धर्म और कर्म ही मनुष्य का साथ देता है |
 
प्रश्न - वायु से तेज कौन चलता हैं ?
उत्तर - मन |
 
प्रश्न - विदेश में साथी कौन होता है?
उत्तर - विद्या |
 
प्रश्न - विद्या क्या है?
उत्तर - ईश्वर से लेकर पृथ्वीपर्यन्त पदार्थों का सत्य विज्ञान प्राप्त करना तथा उनका यथायोग्य उपयोग करना विद्या है |
 
प्रश्न - किसे त्याग कर मनुष्य प्रिय हो जाता है?
उत्तर - अहम् भाव से उत्पन्न गर्व के छूट जाने पर |
 
प्रश्न - कौन सा एकमात्र उपाय है जिससे जीवन सुखी हो जाता है?
उत्तर - अच्छा स्वभाव ही सुखी होने का उपाय है |
 
प्रश्न - सर्वोत्तम लाभ क्या है?
उत्तर - आरोग्य |
 
प्रश्न- मत, पंथ, सम्प्रदाय से बढ़कर संसार में और क्या है?
उत्तर - धर्म |
 
प्रश्न - कैसे व्यक्ति के साथ की गयी मित्रता पुरानी नहीं पड़ती?
उत्तर - सज्जनों के साथ की गयी मित्रता कभी पुरानी नहीं पड़ती |
 
प्रश्न - इस जगत में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?
उत्तर - प्रतिदिन हजारों-लाखों लोग मरते हैं फिर भी सभी को अनंतकाल तक जीते रहने की इच्छा होती है, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?
 
प्रश्न - तीर्थ क्या है?
उत्तर - जितने विद्याभ्यास, सुविचार, ईश्वरोपासना, धर्मानुष्ठान, सत्य का संग, ब्रह्मचर्य, जितेन्द्रियता, दुष्टों का दमन, धर्म- रक्षा, उत्तम कर्म हैं, वे सब तीर्थ कहाते हैं क्योंकि इन्हें करके जीव दुःखसागर से तर सकते हैं
 
प्रश्न - पुरूषार्थ क्या है?
उत्तर - सर्वथा आलस्य छोड़ के उत्तम व्यवहारों की सिद्धि के लिए मन, शरीर, वाणी और धन से अत्यन्त उद्द्योग (परिश्रम) करने को पुरूषार्थ कहते हैं |

प्रश्न- स्वाध्याय किसे कहते है ?
उत्तर- वेद, वाल्मिकी रामायण, गीता, उपनिषद् आदि सद्ग्रन्थों का अध्ययन तथा आत्मचिन्तन करना स्वाध्याय कहलाता है | 

प्रश्न- ईश्वर-प्रणिधान किसे कहते है ?
उत्तर- सभी कर्मों का परमात्मा को समर्पण करना प्राणिधान कहलाता है |


- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल                                                                                                 

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