प्रश्न - क्या हनुमान जी के पूँछ भी नहीं थी?
उत्तर - प्राचीन काल में राजदूत पल्लेदार वस्त्र पहना करते थे, जिनकी कमर का हिस्सा जमीन पर कई मीटर तक घिरसता हुआ चलता था, लेकिन जिस भी देश में जाते थे, वह पल्ला उस देश के सेवक उठाकर रखते थे। यह सम्मान ब्रिटिश काल तक मिलता था। इसी पल्ले को राजदूत की पूंछ कहते थे और श्रीहनुमान जी सुग्रीव की ओर से राक्षस राज्यों के राजदूत पहले से ही नियुक्त थे। भगवान श्रीराम के मिलने से भी पहले से, इसलिए उन्हें माता सीता की खोज के लिए सबसे पहले भेजा गया लंका में और उनके राजदूत वाले लटकते कपडे ही उनकी पूंछ का सही रहस्य है | उनकी तो राजदूतों की सम्मान के साथ पूछ होती थी |
भगवान श्रीराम के जीजा श्री श्रृंग ऋषि ने अपनी स्मृति में उन्हें राजदूत लिखा है, बंदर नहीं। श्रृंग ऋषि ही नहीं वाल्मीकि रामायण में भी हनुमान जी को यकीनन दूत ही लिखा है, देखिए प्रमाण:
वधं न कुर्वन्ति परावरज्ञाः दूतस्य सन्तो वसुधाधिपेन्द्राः
जब रावण के दरबार में विभीषण ने कहा कि दूत यानी राजदूत का वध नहीं हो सकता, तो रावण ने कहा कि ठीक है, इसके पूंछ यानी घिरसने वाले वस्त्र से सेवक हटा लिए जाएं यानी इसकी प्रतिष्ठा सम्मान अब हम नहीं करेंगे, और इस आभूषण को काट कर आग लगा दो।
दूतं किल लांगूलमिष्टंभवति भूषणम्
तदस्य दीप्यतां शीघ्रं तेन दग्धेन गच्छेतु।
अपमान से आहत हनुमान ने रावण के गोलाबारूद पर कब्जा किया और जमकर बमबारी की।
यकीनन वाल्मीकि रामायण में यही लिखा है कि हनुमान ने प्रहस्त के घर में अग्नि फेंकी, फिर महापार्श्व के घर में कूदे और वहां भी अग्नि फेंकी, यहां पूंछ से आग लगाना कतई नहीं लिखा। देखें प्रमाण:
अवप्लुत्य महावेगः प्रहस्तस्य निवेशनम् अग्नि तत्र स सनिक्षिथ श्वसनेन समो बली
ततोन्प्यत्पुप्लुवे वेशम वमहापार्श्वम वीर्यवान मुमोच हनुमाननग्निं कालानलशिखोपमम्
वाल्मीकि रामायण सुंदर कांड 691, 892
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विश्वजीत सिंह
"अभिनव अनंत"
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
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