शनिवार, 27 मई 2017

धर्मयुद्ध में तटस्थ रहकर अपराधी न बनें

अभी ५२०० वर्ष पुरानी घटना है. दुर्योधन के साथ वार्ता विफल होने के पश्चात् युद्ध अवश्यम्भावी हो गया था. श्रीकृष्ण ने विश्व के समस्त राजाओं के पास अपने दूतों को पाण्डवों के पक्ष में युद्ध करने का निमन्त्रण लेकर भेजा.
धर्मनिष्ठ राजा तो इसी दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे.उन्होंने सोचा कि स्वयं श्रीकृष्ण का निमन्त्रण भला कौन मूर्ख ठुकराएगा? उन्होंने अति प्रसन्नता पूर्वक युद्ध के निमन्त्रण को स्वीकार कर लिया. परन्तु कुछ धर्मभ्रष्ट राजाओं ने कहा कि मै कृष्ण वृष्ण को नहीं मानता. कृष्ण तो केवल अपने पक्ष को अच्छा बताते हैं. केवल अपने धर्म को अच्छा बताते हैं. उनकी सोच एकपक्षीय है. जबकि हम ठहरे ऊंची और व्यापक सोच वाले. हम ये सब नहीं मानते. हमारे लिए सब बराबर हैं.... तमाम कौरव तो हमारे दोस्त हैं... वो तो बहुत अच्छे हैं... घर आते हैं तो बहुत मीठी मीठी बातें करते हैं...... हमको तो बिरयानी खिलाते हैं.... आदि आदि...... इसलिए हम तो साहब न्यूट्रल रहेंगे... सेक्युलर रहेंगे.... .
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इसपर श्रीकृष्ण के दूतों ने कहा कि द्वारिकाधीश ने एक सन्देश और दिया है. उन्होंने यह भी कहा है कि आगामी युद्ध धर्म युद्ध है.. और इसमें जो भी धर्म के पक्ष में युद्ध करने नहीं आएगा वह अधर्म के पक्ष में माना जायेगा और उसके साथ ठीक वैसा ही व्यवहार किया जायेगा जैसा दुर्योधन के साथ.....
आज पुनः हम सबको धर्म और अधर्म के बीच निर्णायक युद्ध में सहभागी बनने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो रहा है....और इसका निर्णय होने में भी बहुत समय नहीं लगेगा.
हम सभी को स्पष्ट रूप से तय करना है कि हम धर्म के पक्ष में हैं या अधर्म के.....
किसी भी कारण से तटस्थ रहने वाले लोग अधर्म के पक्ष में माने जायेंगे और इतिहास के पन्नों पे अपना नाम एक अपराधी के तौर पर दर्ज करवा लेंगे. बोलिए,
भारत माता की जय !!!

- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"                                                                                          सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
 

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