|| एकं सद् विप्रा: बहुधा वदन्ति ||
उस एक परमात्मा को ही विद्वान जन बहुत नामों से जानते है, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा, सूर्य, हनुमान, काली, अम्बा, गणेश, राम, कृष्ण, ओ३म आदि उसी एक परमात्मा के नाम है |
परमात्मा साकार भी है, निराकार भी है, और इन दोनों से परे भी है | यदि आप साकार के उपासक है तो परमात्मा के किसी भी दिव्य रुप को अपना इष्ट बना लो और उनके आदर्शो पर चलों क्योंकि पूजा चित्र की नहीं चरित्र की होती है |
दैनिक साधना में अपनी आस्था के अनुसार इष्ट मंत्र, नाम- जप के साथ प्रार्थना- साधना की जायें | लेकिन रविवार की सामूहिक धर्म साधना निर्धारित विधि के अनुसार की जायें |
हमारा इष्ट कोई भी हो, मंदिर में स्थापित प्रतिमा किसी भी देवी- देवता की हो, तो भी हम सब हिंदुओं का महामंत्र गायत्री ही है | गायत्री महामंत्र समूह चेतना के जागरण का मंत्र है, जिस में समूह (हमारे) द्वारा परमात्मा को अन्त:करण में धारण करने की और समूह की (हमारी) बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने की प्रार्थना की गई है | गायत्री छंद में उद् धृत होने के कारण इसे गायत्री मंत्र कहते है, इसका सवित देवता आकाश में स्थित भौतिक पिण्ड सूर्य के लिए नहीं, वरन् विराट परमात्मा के लिए आया है |
आत्म परिष्कार, उज्जवल भविष्य, कामना पूर्ति व सुरक्षित जीवन के लिए तथा समाज में उपस्थित हजारों रावणों- कालनेमियों के विध्वंस के लिए जिस वातावरण और ऊर्जा की आवश्यकता है, सामूहिक धर्म साधना से ही उसका निर्माण होगा |
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