सोमवार, 22 मई 2017

बच्चों के निर्माण में शिक्षकों, आचार्यो, कथावाचकों व अभिभावकों का क्या दायित्व है?


प्रश्न - बच्चों के निर्माण में शिक्षकों, आचार्यो, कथावाचकों अभिभावकों का क्या दायित्व है?
उत्तर - राष्ट्रीय चरित्र और राष्ट्रभावना के बिना कोई भी राष्ट्र महान नहीं बन सकता, और बिना राष्ट्रगौरव के कोई भी व्यक्ति महान नहीं बन सकता | आप घर- परिवार के बच्चों को वह पाठ्यक्रम दे जिसे हमारे देश के पाठ्यक्रम में नहीं दिया जा रहा है | रामायण, महाभारत की कथा, गीता, उपनिषद् आदि स्मरण कराये जा सकते है | साथ ही संस्कृत का अभ्यास अवश्य कराया जाये |  

ईसाईयों को अंग्रेजी आती है वो बाइबल पढ़ लेते है, मुसलमानों को उर्दू आती है वो कुरान पढ़ लेते है | सिक्खों को गुरूवाणी का पता है वो गुरू ग्रन्थ साहिब पढ़ लेते है, पर हिन्दुओं को संस्कृत आती नहीं, वो ना वेद पढ़ पाते है, ना गीता ना उपनिषद् |  

इससे बडा दुर्भाग्य क्या होगा किसी धर्म का ? इसी अज्ञानता का लाभ पॉप, म्लेछ पिशाच आदि उठाते है और विभिन्न प्रकार के पाखण्ड षड़यन्त्र रचकर हिन्दू समाज का शोषण धर्म-भ्रष्ट करते है | माता-पिता एवं शिक्षकों के साथ ही कथावाचकों, साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों को भी राष्ट्र- निर्माण की दिशा में प्रयास करना होगा |  

सरकार को भी चाहिए कि वह अपना व्यवसायिक दृष्टिकोण त्यागकर धर्म, दर्शन, न्याय, संस्कृति, आध्यात्मिक विज्ञान जैसे क्षेत्रों में अधिक से अधिक निवेश करें | बच्चों को गुमराह करने वाले साहित्य एवं मीडिया पर तत्काल प्रतिबन्ध इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा |  
स्थान - स्थान पर संस्कार शालाएँ एवं धर्म प्रशिक्षण केन्द्र चलाए जाने से निश्चित ही भटके बाल युवामन को सही दिशा में लाया जा सकता है | हमारी नैतिकता को झकझोरती वर्तमान समाज- व्यवस्था में बच्चों के नवनिर्माण के लिए आमूलचूल परिवर्तन की यह अनिवार्य आवश्यकता है |


- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल                                                                                                 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें