सोमवार, 22 मई 2017

क्या सबका मालिक एक है? कृपया धर्म, पंथ और सम्प्रदाय में मूलभूत अन्तर स्पस्ट करें !



प्रश्न - तो फिर क्यों कहा जाता है कि सबका मालिक एक है?
उत्तर - अज्ञानता के कारण | जिन लोगों को धर्म, मत, पंथ, सम्प्रदायों के अन्तर का ज्ञान नहीं होता वे ही ऐसी भ्रामक बातें करके धर्म समाज का पतन करते है |

प्रश्न- कृपया धर्म, पंथ और सम्प्रदाय में मूलभूत अन्तर स्पस्ट करें !
उत्तर- धर्म ईश्वर प्रदत्त वह शाश्वत ज्ञान एवं कर्तव्य- अकर्तव्य का मार्गदर्शक विधान है, जो आस्तिक, नास्तिक सभी मनुष्यों के विकास कल्याण के लिए है |  

यह एक समतावादी, मानवतावादी, सार्वभौमिक, सार्वकालिक, सत्यस्वरूप, आत्मविवेक आधारित पक्षपात रहित तथा तर्कसंगत दर्शन है जो रंग-भेद, नस्ल भेद, लिंग भेद, भाषा भेद एवं राजनैतिक चिन्तनों की सीमा से परे हैं |  

इसके लिए सृष्टिकर्ता और मनुष्य के बीच किसी पारदर्शी शरीर, मध्यस्थ, पीर-फकीर, मुल्ला-मौलवी, मसीह, पण्डित आदि की आवश्यकता नहीं है | यह मत- मतान्तरों के पारस्परिक राग- द्वेष, घृणा एवं व्यक्तिनिष्ठ कट्टरपन से भी मुक्त है |  

यह स्वतंत्र चिन्तनोन्मुखी, ज्ञान- विज्ञान प्रेरक सत्यनिष्ठ कर्तव्य पालन की आचारसंहिता है, जो सनातन है, जिसे सनातन धर्म, मानव धर्म, वैदिक धर्म या हिन्दू धर्म भी कह सकते है | इसमें स्वधर्म, मातृधर्म, पितृधर्म, बन्धुधर्म, पतिधर्म, पत्नीधर्म, संतानधर्म, मित्रधर्म, पड़ोसधर्म, समाजधर्म, राष्ट्रधर्म, विश्वधर्म सभी समाविष्ट है |  

धर्म का पूजा- पद्धति से कोई सम्बन्ध नहीं है |

जबकि सम्प्रदाय अर्थात किसी मनुष्य विशेष द्वारा चलाये गए पंथ ( मजहब या रिलीजन ) को मानने वाले लोगों का समूह और उनका आचरण हुआ साम्प्रदायिक |  

जैसे ईसाई बनने के लिए गुलाब जल होठों से लगाना पडता है, ईसाई बनने के लिए बाइबिल आवश्यक है, ईसा को मानना आवश्यक है | मुसलमान बनने के लिए खतना कराना पडता है, कुरान पर विश्वास लाना पडता है और मौहम्मद को अंतिम पैगम्बर ( देवदूत या अवतार ) मानना आवश्यक होता है | इसी प्रकार अन्य पंथों के अपने साम्प्रदायिक आचरण है, ये धर्म नहीं है, ये सब सम्प्रदाय है | 

क्योंकि धर्म का अर्थ साम्प्रदायिक आचरण नहीं बल्कि वह सूत्रात्मकता है जो समाज का पोषण, रक्षण, अभ्युदय भौतिक आध्यात्मिक दृष्टि से होता है, व्यष्टि और समष्टि के रिश्ते तय होते है तथा जो बुद्धि चरित्र का विकास करता है | यही राष्ट्र के अतीत को भविष्य से जोडने वाला सेतु भी है |
 
धर्म समाज को जोडता है, जबकि सम्प्रदाय (मजहब या रिलीजन) समाज को तोडता है | जब तक कुरान, बाइबल जैसी साम्प्रदायिक पुस्तकों में मानव विभाजक प्रेरणाएँ उपलब्ध है, तब तक संसार में समता की, एकता की बातें दिव्यास्वप्न मात्र है |


- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल                                                                                                 

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