प्रश्न - अधर्म क्या है?
उत्तर - जिसका स्वरुप ईश्वर की आज्ञा को छोङकर और पक्षपात सहित अन्यायी होके मत, पंथ, सम्प्रदायों में उलझकर बिना परीक्षा करके अपना ही हित करना है । जिसमें अविद्या , हठ , अभिमान, क्रूरतादि दोषयुक्त होने के कारण वेदविद्या से विरुद्ध है, इससे यह अधर्म कहलाता है, यह अधर्म सब मनुष्यों को छोङने के योग्य है |
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विश्वजीत सिंह
"अभिनव अनंत"
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल
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