सोमवार, 22 मई 2017

समय के शब्दों में भागवद् गीता का सन्देश


|| समय के शब्दों में भागवद् गीता का सन्देश ||
करुक्षेत्र की रणभूमि में नारायण को सुनने के लिए मानो मैं भी रुक सा गया, मैं तो कभी ठहरता ही नहीं, आज मैं समय नहीं हूँ क्योकि मैं तो किसी के लिए ठहरता ही नहीं हूँ ! परंतु आज मैं किसी शिष्य की भाँती हाथ जोड़े रणभूमि करुक्षेत्र के मैदान में खड़ा हुआ नारायण की बाते सुन रहा हूँ !

अर्जुन तो मात्र माध्यम है भगवान कृष्ण तो बात मुझसे कर रहे है क्योकि मैं बीता हुआ कल भी हूँ आज भी हूँ और आने वाला कल भी हूँ, अर्जुन के प्रश्न केवल अर्जुन के नहीं थे वो प्रश्न पिछले युग में भी प्रासंगिक थे इस युग के लिए भी प्रासंगिक है और आने वाले युगों में भी प्रासंगिक रहेंगे जब तक मैं हूँ तब तक मानव जातियो को इन प्रश्नो का सामना करना पड़ता रहेगा  

इसलिए कोई ये समझे की ये प्रश्न केवल द्रोण शिष्य अर्जुन ही कर रहा है उसके कंठ से मैं भी बोल रहा हूँ क्योकि हर दिन हर युग के लिए उसका अपना एक करुक्षेत्र होता है अतः हे मानव तू नारायण से अपने प्रश्नो के उत्तर सुन सदैव से तुझे करते चले रहे है कर्म करो तुम ज्ञान से श्रेष्ठ ज्ञान है कर्म, कर्मयोग ही धर्म है, धर्मयोग ही कर्म ! पाप के सागर को केवल ज्ञान की नौका ही पार कर सकती है !  

तेरा कर्म ही तेरा धर्म है किन्तु यदि तेरा कर्म यदि तेरे हित के लिए है वो कर्म पाप की ओर ले जाने वाला कर्म है इसलिए अपने से मुक्त होकर समाज के कल्याण के लिए कर्म कर यही मोक्ष मार्ग है यदि समाज सुखी नहीं तो व्यक्ति भी सुखी नहीं रह सकता !  

यदि समाज के आँखों में आँसू है तो तेरी आँख भी सुखी नहीं रह सकती ! यदि वृक्ष कट जाएंगे तो तुझे फल भी नहीं मिल सकता क्योकि फल और छाया देना वृक्ष का कर्तव्य है तू समाज का एक भाग है तू अपने को स्वामी मत समझ इसी में तेरा कल्याण है और ये ज्ञान श्रेष्ठ है और जिसको ये ज्ञान है उसका जीवन यज्ञ है !

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