सोमवार, 22 मई 2017

अवतार कौन होता है? अवतरण किसका होता है?



प्रश्न - अवतार कौन होता है?
उत्तर - अवतार अर्थात अवतरित होना कि जन्म लेना जिस प्रकार क्रोध प्रकट होता है वह अवतरित नहीं होता उसे तो अहंकार जन्म देता है परन्तु अवतार का जन्म नहीं होता है जैसे अहंकार और इर्ष्या के संयोग से क्रोध जन्मता है इस प्रकार अवतार का अर्थ है अवतरण

प्रश्न - तो फिर किसका अवतरण होता है?
उत्तर - इसका स्पष्ट वर्णन श्रीमद्भगवद्गीता में योगीराज भगवान श्रीकृष्ण करते है कि
                   यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा
                   तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम् -
                                       श्रीमद्भगवद्गीता १०/ ४१
अर्थात – (यत् तत् विभूतिमत्) जो - जो ऐश्वर्ययुक्त , (सत्वम्) श्रेष्ठ पदार्थ हैं, (श्रीमत् ऊर्जितम् एव) अथवा कान्तियुक्त तथा शक्तियुक्त भी हैं l (तत् तत् एव त्वं अवगच्छ) तुम उसे (मम तेजोंऽश सम्भवम्) मेरे तेज के अंश से उत्पन्न समझों |
 
स्मरणतः भगवदगीता में मम् मया इत्यादि शब्दों से अभिप्राय परमात्मा के और परमात्मा से समझना चाहिए l इस प्रकार श्लोक का अभिप्राय यह बनता है कि इस संसार में जो - जो ऐश्वर्य , कान्ति और शक्तियुक्त पदार्थ हैं, सब परमात्मा के तेज के एक अंश से ही बने हैं l  

यह सर्वविदित तथ्य है कि प्रत्येक प्राणी में प्राण (कार्य करने की शक्ति) परमात्मा की ही देन है l ब्रह्मसूत्र में भी कहा है किवाकादि इन्द्रियों के कार्यों से (प्राणी में) उस परमात्मा के चिह्न का पता चलता है .” – ब्रह्मसूत्र --१८ तत्पश्चात लिखा है कियह अर्थात प्राण शक्ति उसने इतर (जीवात्मा) की सलाह से कार्य करने के लिए दी हुई है l ”  

अभिप्राय यह है कि प्राणियों के प्राण अर्थात कार्य करने की शक्ति परमात्मा की है और जो विशेष विभूतियुक्त श्रीमत् और ऊर्जितम् पदार्थ अथवा प्राणी होते हैं, उनमे परमात्मा की विशेष शक्ति होती है l ऐसे प्राणी ही अवतार कहाते हैं l



- विश्वजीत सिंह "अभिनव अनंत"
सनातन संस्कृति संघ/भारत स्वाभिमान दल                                                                                                 

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